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डॉ. नीरजा माधव उपन्यास विधा की असाधारण सिद्धि संपन्न लेखिका हैं। अपने उपन्यासों के माध्यम से वे अपने युग के प्रति एक व्यापक प्रतिक्रिया, उसकी विसंगतियों के प्रति एक मुखर बेचैनी को अभिव्यक्ति तो देती ही हैं, साथ-ही-साथ भारतीय जीवन के अव्यय भाव को एक शब्दाकृति भी देती हैं। भाव-प्रवणता, विचार-विदग्धता और विविधतापूर्ण शैली, उनके गद्य लेखन, विशेष रूप से उपन्यास लेखन की विशिष्टता और लेखिका की पहचान है।
प्रस्तुत उपन्यास ‘रात्रिकालीन संसद्’ में एक-एक शब्द ध्वनि-तरंगों को एक सजीव आकृति देते हुए उनकी विशिष्ट उपस्थिति के साथ पाठकों को एक दूसरे ही लोक में विचरण करवा सकने में अद्भुत रूप से सफल होते हैं। लेखन की यह विशिष्ट शैली निस्संदेह उपन्यास विधा का महत्त्वपूर्ण परिवर्तन बिंदु प्रमाणित होगी। ध्वनि-तरंगें कभी नष्ट नहीं होतीं। यह एक प्रकार की ऊर्जा है। यही विशिष्ट ध्वनि-तरंगें पात्रों के रूप में राष्ट्रीय उथल-पुथल की साक्षी बनती हैं, असह्य वेदना महसूस करती हैं और महाक्रांति का आह्वान करने को तत्पर भी होती हैं। अपने आप में एक नए ढंग का अद्भुत उपन्यास है—‘रात्रिकालीन संसद्’।
जन्म : 15 मार्च, 1962 को ग्राम कोतवालपुर, पो. मुफ्तीगंज, जौनपुर में।
शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेजी), बी.एड, पी-एच.डी.।
प्रकाशन : ‘चिटके आकाश का सूरज’, ‘अभी ठहरो अंधी सदी’, ‘आदिमगंध तथा अन्य कहानियाँ’, ‘पथ-दंश’, ‘चुप चंतारा रोना नहीं’, ‘प्रेम संबंधों की कहानियाँ’ (कहानी संग्रह); ‘प्रथम छंद से स्वप्न’, ‘प्रस्थानत्रयी’, ‘प्यार लौटना चाहेगा’ (कविता संग्रह); ‘यमदीप’, ‘तेभ्यः स्वधा’, ‘गेशे जंपा’, ‘अनुपमेय शंकर’, ‘अवर्ण महिला कांस्टेबल की डायरी’, ‘ईहामृग’, ‘धन्यवाद सिवनी’, ‘रात्रिकालीन संसद्’ (उपन्यास); ‘चैत चित्त मन महुआ’, ‘साँझी फूलन चीति’, ‘रेडियो का कला पक्ष’, ‘हिंदी साहित्य का ओझल नारी इतिहास (सन् 1857-1947)’, ‘साहित्य और संस्कृति की पृष्ठभूमि’। विविध कृतियों का अनुवाद। कुछ रचनाएँ विभिन्न पाठ्यक्रमों में शामिल।
पुरस्कार-सम्मान : ‘सर्जना पुरस्कार’, ‘यशपाल पुरस्कार’, ‘म.प्र. साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘शंकराचार्य पुरस्कार’, ‘शैलेश मटियानी राष्ट्रीय कथा पुरस्कार’, ‘राष्ट्रीय साहित्य सर्जक सम्मान’।
संप्रति : कार्यक्रम अधिशासी, आकाशवाणी (प्रसार भारती)।
इ-मेल: neerjamadhav@gmail.com
मो. : 09792411451