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पुलिस ने आकर जोरों से तहकीकात करनी शुरू कर दी। आस-पास के लगभग सभी लोगों के मन में यह बात घर कर गई थी कि चंदा ने ही जिठानी की हत्या की है। सभी गाँववालों के बयानों से ऐसा ही सिद्ध हुआ।
पुलिस की ओर से चंदा से जब पूछा गया तो उसने कहा, ‘‘हाँ, मैंने ही खून किया है।’’
‘‘क्यों खून किया?’’
‘‘मुझसे वह डाह रखती थी।’’
‘‘कोई झगड़ा हुआ था?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘वह तुम्हें पहले मारने आई थी?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तुम पर किसी किस्म का अत्याचार किया था?’’
‘‘नहीं।’’
इस प्रकार का उत्तर सुनकर सब देखते रह गए।
छदामी एकदम घबरा गया। बोला, ‘‘यह ठीक नहीं कह रही है। पहले बड़ी बहू...’’
-इसी पुस्तक से
नोबेल पुस्कार विजेता, विश्व-प्रसिद्ध साहित्यकार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियों से चुनी नई श्रेष्ठ कहानियों का संग्रह। आशा है, पाठक इन कहानियों के माध्यम से गुरुदेव के कहानीकार रूप का दिग्दर्शन कर सकेंगे।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।
बचपन से ही उनकी कविता, छंद और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान पूँक्तकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में ‘गीतांजलि’, ‘पूरबी प्रवाहिनी’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘महुआ’, ‘वनवाणी’, ‘परिशेष’, ‘पुनश्च’, ‘वीथिका शेषलेखा’, ‘चोखेरबाली’, ‘कणिका’, ‘नैवेद्य’ ‘मायेर खेला’ और ‘क्षणिका’ आदि शामिल हैं।
उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंगेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941