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उसने कहा जब मरना ही है तो चलो मेरे साथ। और बस वो पाँच हजार जिंदा लाशें चल पड़ीं मौत की आँखों में आँखें डालने। वो चल पड़े शांति की तलाश में। कहते हैं अपनी जमीन और हक की एक लड़ाई सहस्रों साल पहले पांडवों को लड़नी पड़ी थी। अपनों को युद्ध में सामने खड़ा देख अर्जुन धर्मसंकट में थे और उन्हें इससे उबारने के समाधान के रूप में गीता का जन्म हुआ।
पर सवाल यह है कि शांति चाहता कौन है? पैसा, बाजार और ताकत तो अशांति में उत्सव मनाते हैं। सरकार और शांति दोनों ही कश्मीर में हर पल हार रहे हैं। कभी पत्थरबाजों के पत्थरों से, कभी सीमापार की गोलियों से, कभी पढ़ाई से बहुत दूर जाते बस्तों से। अकेली आर्मी या सरकार शांति नहीं ला सकती। न्याय, धर्म, स्वाभिमान और मानवता तो सिर्फ और सिर्फ एक आम आदमी की पहल से ही संभव है। क्योंकि एक वो ही है, जिसे शांति में नफा या नुकसान नहीं, जिंदगी दिखती है।
यह कहानी एक ऐसे ही आम आदमी ‘अभिमन्यु’ की कहानी है। वह अभिमन्यु, जिसने ‘अशांति’ के अर्थतंत्र पर सेंधमारी की और शांति के लिए पहला कदम बढ़ाया। और जब वो पहला कदम उठा, उसने एक ऐसी असाधारण परिस्थिति को जन्म दिया, जिसका किसी को भान न था। देखते-ही-देखते पाँच हजार जिंदा लोग एक आम लड़के अभिमन्यु के नेतृत्व में आत्मघाती दस्ते में तब्दील हो गए। शायद वो विश्व का सबसे बड़ा आत्मघाती दस्ता था। जीना तो मुश्किल था ही, पर क्या मरना आसान था? क्या होगा जब इनके आगे भी इनका अतीत खड़ा होगा? क्या इनके आगे भी इनके अपने युद्ध के लिए खड़े होंगे? कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत में गीता का जन्म हुआ। क्या यह कहानी ‘रिफ्यूजी कैंप’ वादी में चल रही लड़ाइयों का कोई समाधान खोज पाएगी?
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अनुक्रम
तुम्हारे लिए — Pgs. 5
प्रस्तावना — Pgs. 7
क्योंकि इस कहानी को कहना जरूरी है — Pgs. 11
1. वादी के बदलते मौसम — Pgs. 15
2. वे अड़तालीस घंटे — Pgs. 55
3. सब्ज शादाब के सही मायने — Pgs. 83
4. वोतलबुज — Pgs. 146
5. शंखनाद — Pgs. 220
आशीष कौल मीडिया व एंटरटेनमेंट जगत् का जाना-माना नाम है। आशीष का विश्वास है कि व्यक्ति हो या समाज, सशक्तीकरण का रास्ता ‘संवाद’ से होकर निकलता है और बेहतरीन संवाद तब स्थापित होता है, जब समुचित जानकारी और उदहारण के साथ अपनी बात कही जाए। अपनी इसी अलग सोच और खास अंदाज के चलते बिजनेस लीडर और कम्यूनिकेशंस एक्सपर्ट के रूप में भी उन्होंने खूब प्रतिष्ठा अर्जित की है। 1990 में सपरिवार कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हुए आशीष कॉल ने जी नेटवर्क, हिंदुजा ग्रुप, बी.ए.जी. नेटवर्क समेत कई बड़ी कंपनियों में ऊँचे पदों पर रहने के बाद अपनी कंपनी ‘फोकलोर एंटरटेनमेंट’ के साथ एक नई पारी शुरू की है। इस पारी में वह कश्मीर के 5000 साल के इतिहास के शोध से जुटाए तथ्यों को किताबों और डॉक्यूमेंटरी की शक्ल में लोगों के सामने रख रहे हैं, ताकि कश्मीर का इतिहास और सच पूरे देश और विश्व के सामने आए। इतिहास के सिरे जोड़ते वक्त आशीष के सामने ऐसी कई प्रभावी ऐतिहासिक स्त्रियाँ आईं जिनके कारण कभी श्रीकृष्ण ने स्वयं कश्मीर को ‘स्त्रीदेश’ का नाम दिया। इन महिलाओं ने दुनिया को कई लोक कल्याणकारी व्यवस्थाएँ, जैसे जन वितरण केंद्र, जल वितरण सुविधाएँ, जनतंत्र, बैंकिंग जैसी व्यवस्थाएँ दीं। ऐतिहासिक महायोद्धा रहीं ‘दिद्दा’ उन्हीं विशिष्ट महिलाओं में से एक हैं। आशीष कौल की पिछली तीन पुस्तकें भी बेस्टसेलर की सूची में संकलित होकर पाठकों के बीच खूब लोकप्रिय हुईं।