जसवंत सिंह रावत: वो जांबाज़ जो अकेले 72 घंटों तक 300 चीनी सैनिकों से जूझा और अरुणांचल को बचाया
- सुबह के करीब 5 बजे चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जे के इरादे से सेला टॉप के नजदीक धावा बोल दिया. मौके पर तैनात गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने उनका सामना किया.
- जसवंत सिंह रावत इसी का हिस्सा थे. मौके की नजाकत को देखते हुए जसवंत तरंत हरकत में आ गए और उन्होंने अपने साथियों के साथ हरकत शुरू कर दी. इस तरह 17 नवंबर 1962 को शुरू हुई यह लड़ाई अगले 72 घंटों तक लगातार जारी रही. इस बीच जसवंत अकेले ही चीनी सैनिकों पर भारी पड़े.
- उन्होंने अपनी विशेष योजना के तहत अकेले ही करीब 300 से अधिक चीनी सैनिकों मार गिराया था. वह चीनी सैनिकों को अरुणाचल की सीमा पर रोकने में कामयाब भी हुए, लेकिन उन्हें पीछे नहीं धकेल सके. कहते हैं कि लड़ाई के बीच उन्हें पीछे हटने के आदेश दे दिए गए थे.
- दरअसल उनकी टुकड़ी के पास मौजूद रसद और गोली- बारूद खत्म हो चुके थे. ऐसे में दुश्मन के सामने खड़े होने का मतलब था, मौत को गले लगाना. पर जसवंत तो जसवंत थे! उन्होंने इस आदेश को नहीं माना और अपनी आखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करते रहे. ऐसा भी नहीं था कि उन्हें दुश्मन की ताकत का अंदाजा नहीं था, पर वह जानते थे कि जंग कितनी भी बड़ी क्यों न हो, जीतना नामुमकिन नहीं होता.
- जसवंत की शौर्यगाथा में 'सेला और नूरा' नाम के दो बहनों का जिक्र भी आता है. कहते हैं कि चीनी सैनिकों से लड़ते हुए, जब उनके सारे साथी शहीद हो गए, तो उन्होंने तय किया कि वह लड़ाई का तरीके बदलेगें। इसके लिए उन्होंने नई रणनीति बनाई.