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प्रस्तुत पुस्तक रिश्तों की मिठास और खटास, दोनों से भरी है। ‘रिश्ता’ जो बहुत करीब और कभी बहुत दूर है, पर सच यही है कि रिश्ता अंधकार में प्रकाश का स्रोत भी है। आइए, रिश्तों की इन अनुभूतियों को हम साथ मिलकर महसूस करें। रिश्तों के कारवाँ में हम खुद को कहाँ पाते हैं और रिश्तों को समझने का मेरा नजरिया आपको क्या अहसास कराता है, आइए इस पुस्तक के जरिए जानते हैं।
रिश्ता नाज़ुक मोती की माला जैसा, जो ये टूटे तो बिखरे अहसास हमारा।
रिश्ता फूलों का प्यारा गुलिस्ताँ, जिसकी खुश्बू से महके आशियाँ हमारा।
आप इस पुस्तक को पढ़ें और मुझे अवगत कराएँ कि यह पुस्तक आपको कैसी लगी। आपके द्वारा मेरी पुस्तक की सराहना ही मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो मुझे बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करती है।