आज यह विश्वास करना कठिन है कि केवल दो सौ वर्ष पहले तक पृथ्वी का एक पूरा महाद्वीप केवल कल्पनाओं और गल्प- कथाओं तक सीमित था। इस काल्पनिक महाद्वीप को ‘अंटार्कटिका’ का नाम दिया गया; ‘अंटार्कटिक’ शब्द का अर्थ है—‘एंटी-अंटार्कटिक’, यानी आर्कटिक के विपरीत। अगर आप ग्लोब उठाकर देखें तो उसके सबसे निचले भाग में चारों ओर पानी से घिरा हुआ एक सफेद भाग दिखाई देगा। यही है विश्व का सातवाँ महाद्वीप—अंटार्कटिका। यह कोई छोटा-मोटा क्षेत्र नहीं है; यह फैला है 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में! इसमें समा सकते हैं विशाल भारत जैसे पूरे पाँच देश! आधुनिक विज्ञान के इस युग में भी इस सुनसान वीराने में साल भर रहनेवाले हैं कुल जमा 700-800 लोग! इस महाद्वीप की अपनी कोई आबादी नहीं है। आज भी बाहर के देशों से आनेवाले गिनती के कुछ वैज्ञानिक ही यहाँ के अस्थायी निवासी होते हैं।
अंटार्कटिका की जमीन और आसमान एक से बढ़कर एक विचित्रताओं से भरे हुए हैं। न तो होते हैं वहाँ हमारे जैसे दिन-रात, न ही वैसी अटल हैं दिशाएँ। सूरज तक पूरब से नहीं निकलता, न पश्चिम में ढलता है! कुछ आँधियाँ घड़ी को देखकर चलती हैं तो कुछ तूफान हफ्तों तक चलते ही रहते हैं! बादल खूब आते हैं, पर गरजते नहीं! इंद्रधनुष दिन में नहीं बल्कि रात में निकलते हैं और खड़े रहने की जगह नाचने लगते हैं! भ्रम ऐसे कि दूरी का पता न चले या फिर दिशा-बोध ही समाप्त हो जाए, या फिर जमीन की चीजें आसमान में लटक जाएँ! सूरज कभी तो दिखे ही नहीं, कभी दिखे तो एक साथ दर्जन भर सूर्य!...इसीलिए इस पुस्तक को नाम दिया गया है—‘रोचक और रोमांचक अंटार्कटिका’।
इस पुस्तक को पढ़कर पाठक निश्चय ही निर्जन एवं दुर्गम अंटार्कटिका महाद्वीप की रोमांचक यात्रा कर सकेंगे और उसके बारे में अनेक जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे।
जन्म : 31 अगस्त, 1954
शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. (भूविज्ञान)।
अंटार्कटिका के पहले : बस्तर के जंगलों, अरावली की पहाडि़यों, हिमालय में अरुणाचल व हिमाचल प्रदेश के पर्वतों और राजस्थान के थार मरुस्थल में कार्य करने का अनुभव।
अंटार्कटिका में : सन् 1990 से भारतीय अंटार्कटिक अभियानों में कार्यरत। अंटार्कटिका में लगभग पाँच वर्ष का निवास। तीन बार ‘विंटरिंग’ के साथ अब तक कुल आठ अभियानों में भाग लिया। वहाँ के ग्लेशियरों पर विशेष कार्य। दो बार भारतीय दल का नेतृत्व। भारत सरकार के ‘अंटार्कटिका अवार्ड’ से सम्मानित।
संपर्क : arun_antarctica@yahoo.co.uk