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आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य के भाँति-भाँति के कौतूहलों और जिज्ञासाओं को शमित करने में विज्ञान ही सक्षम रहा है। विज्ञान के बल पर ही मनुष्य चंद्रमा पर उतरा और मंगल ग्रह पर उतरने की तैयारी कर रहा है। उसने अणु-परमाणु के विखंडन व संघटन के परिणाम जान लिये हैं और अंतरिक्ष के ग्रहों-उपग्रहों से संबंध स्थापित कर रहा है। विज्ञान की इन्हीं चमत्कारक गतिविधियों ने विज्ञान लेखन की कल्पना को नई-नई संचेतनाएँ दीं, जिससे रोचक व रोमांचक विज्ञान कथाओं का सृजन हुआ।
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अद्भुत कल्पनाशीलता से भरी हैं तथा अपने पाठकों को भरपूर आनंद देती हैं।
जन्म : 19 जुलाई, 1938 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में।
शिक्षा : आरंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में प्राप्त की, जहाँ पिता विष्णु वासुदेव नारलीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे। स्कूल और कॉलेज में उत्तम प्रदर्शन के बाद श्री नारलीकर ने सन् 1957 में बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने गणित में अपनी कैंब्रिज डिग्रियाँ प्राप्त कीं—बी.ए. (1960), पी-एच.डी. (1963), एम.ए. (1964) और एससी.डी. (1976); परंतु खगोलविद्या और खगोलभौतिकी में विशेषज्ञता प्राप्त की। सन् 1962 में ‘स्मिथ पुरस्कार’ और 1967 में ‘एडम्स पुरस्कार’ प्राप्त किए। बाद में किंग्ज कॉलेज के एक फेलो (1963-1972) और इंस्टीट्यूट ऑफ थियोरेटिकल एस्ट्रोनॉमी के संस्थापक स्टाफ सदस्य (1966-72) के रूप में सन् 1972 तक कैंब्रिज में रहे।
उन्हें कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और मानद डॉक्टरेट उपाधि मिली हैं। उन्हें ‘भटनागर पुरस्कार’ तथा ‘एम.पी. बिड़ला पुरस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है। वर्ष 1965 में छब्बीस वर्ष की युवावस्था में ‘पद्मभूषण’ से तथा वर्ष 2004 में ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत किए गए।