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राष्ट्रपति पुरस्कार से दो बार सम्मानित भावेश भाटिया सनराइज कैंडल्स इंडस्ट्री के संस्थापक है। पूर्णतः अंध होने के बावजूद अपनी मेहनत व जिद के चलते महाबलेश्वर में छोटी रेकड़ी से शुरू किया गया कैंडल का व्यवसाय आज सनराइज कैंडल्स के माध्यम से देश-विदेश में करोड़ों के कारोबार में फैल चुका है। अपने साथ बाकी दृष्टिबाधितों को रोजगार मिल सके, इसलिए उनकी कंपनी में आज हजारों से ज्यादा दृष्टिबाधित उनके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं।
यह आत्मचरित्र एक ऐसे योद्धा की कहानी है, जिसने शिखर पर पहुँचने के लिए बेहद कठिन परिस्थितियों पर विजय पाई। बचपन में रेटिना मस्कुलर डिजनरेशन बीमारी के चलते अपनी आँखों की रोशनी खोनी पड़ी। अपनी माँ को कैंसर की वजह से खोना पड़ा, लेकिन—माँ की दी हुई सीख थी, ‘‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम दुनिया नहीं देख सकते, लेकिन जीवन में ऐसा जरूर कुछ करने की कोशिश करो कि दुनिया तुम्हारी तरफ देखना शुरूकरे।’’ शायद इन्हीं शब्दों की ताकत थी, कि भावेश ने अपनी पत्नी
नीता के साथ एक ऐसा विश्व खड़ा किया, जो समाज में सभी घटकों के लिए प्रेरणादायी है।
बचपन से खेलों में दिलचस्पी के कारण भावेश ने अपना जज्बा अंध होने के बावजूद कायम रखा। उसी के चलते राष्ट्रीय पैराओलंपिक और इंडियन ब्लाइंड स्पोर्ट्स एसोसिएशन को मिलाकर कुल 114 मेडल्स के भावेश हकदार हैं।
डॉ. सचिन पाचोरकर नाशिक (महाराष्ट्र) के मराठा विद्या प्रसारक के.बी.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्राध्यापक हैं, जिन्हें व्यवस्थापन शास्त्र में पढ़ाने का एक दशक से भी ज्यादा का अनुभव प्राप्त है। मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में अपना मास्टर्स पूरा किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पूणे से सेल्फ एंप्लॉयमेंट विषय में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की है। पिछले कई सालों से सामाजिक उद्यमिता क्षेत्र में उनका योगदान रहा है। नाशिक में 2015 के कुंभमेला में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘कुंभथॉन’ उपक्रम शुरू किया, जिसके चलते नाशिक कुंभमेला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहँुचाने में विशेष मदद मिली।