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तुम्हारे दादाजी लॉयन ट्रेनर बने हैं?’’ गौतम ने पूछा।
‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता। मैंने कहा, ‘‘उन्होंने शेरों के साथ कभी अभ्यास नहीं किया है। उन्हें बाघों के साथ ठीक लगता है!’’ लेकिन बाघों के साथ कोई और था।
‘‘हो सकता है वो जादूगर बने हों।’’ मिलेनी ने राय दी।
‘‘वो जादूगरों से ज्यादा लंबे हैं।’’ मैंने कहा।
गौतम ने फिर एक अनुमान लगाया, ‘‘शायद वो दाढ़ीवाली औरत बने हों!’’
जब दाढ़ीवाली औरत हमारी तरफ आई तो हमने उसे गौर से देखा। उसने हमारी ओर दोस्ताना तरीके से हाथ हिलाया और गौतम ने उससे पूछ लिया, ‘‘माफ करिएगा, क्या आप रस्किन के दादाजी हैं?’’
‘‘नहीं डियर।’’ उसने जोर से हँसते हुए जवाब दिया, ‘‘मैं उसकी गर्लफ्रेंड हूँ!’’ और फिर वो रस्सी कूदती हुई रिंग के दूसरी ओर चली गई।
फिर एक जोकर हमारे पास आया और तरह-तरह के चेहरे बनाने लगा।
‘‘क्या आप दादाजी हैं?’’ मिलेनी ने पूछा।
—इसी पुस्तक से
रस्किन बॉण्ड लेखन में अपने आस-पास के लोग, परिस्थितियाँ, परिवेश ऐसे गूँथते हैं कि पाठक उससे बँध जाता है और वह कहानी-कथानक उसे अपनी ही गाथा लगने लगती है। जीवन की छोटी-से-छोटी घटना को एक मजेदार कहानी गढ़ देने में रस्किन बॉण्ड सिद्ध हैं। उनकी बेहद लोकप्रिय एवं पठनीय कहानियों का संग्रह।
जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। बचपन में ही मलेरिया से इनके पिता की मृत्यु हो गई, तत्पश्चात् इनका पालन-पोषण शिमला, जामनगर, मसूरी, देहरादून तथा लंदन में हुआ। इनकी रचनाओं में हिमालय की गोद में बसे छोटे शहरों के जन-जीवन की छाप स्पष्ट है। इक्कीस वर्ष की आयु में ही इनका पहला उपन्यास ‘द रूम ऑन रूफ’ (The Room on Roof) प्रकाशित हुआ। इसमें इनके और इनके मित्र के देहरा में रहते हुए बिताए गए अनुभवों का लेखा-जोखा है। भारतीय लेखकों में बॉण्ड विशिष्ट स्थान रखते हैं। उपन्यास तथा बाल साहित्य की इनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1999 में इन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।