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Author Mahesh Chandra Kaushik
Features
  • ISBN : 9789355210876
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Mahesh Chandra Kaushik
  • 9789355210876
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2023
  • 176
  • Soft Cover
  • 270 Grams

Description

एस.आई.पी. का शाब्दिक अर्थ है—‘सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान’, अर्थात् एस.आई.पी. वास्तव में सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान की शॉर्ट फॉर्म है। हिंदी में कहें तो क्रमबद्ध तरीके से निवेश की योजना।
सामान्यतः म्यूचुअल फंडों में एस.आई.पी. का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। म्यूचुअल फंड एक प्रकार का सामूहिक निवेश है, इसे आप ‘पारस्परिक निधि’ भी कह सकते हैं। इसमें निवेशकों के समूह मिलकर स्टॉक या प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। 
एस.आई.पी. में एक निश्चित राशि का निवेश एक निश्चित समय अंतराल, जैसे प्रत्येक एक माह के बाद या प्रत्येक तीन माह में या प्रत्येक छह माह में म्यूचुअल फंड में किया जाता है।
विश्व में आज तक निवेश के लिए जितने भी सिस्टम खोजे गए हैं, उनमें एस.आई.पी. को सबसे सुरक्षित, सबसे सरल व सबसे ज्यादा लाभकारी सिस्टम माना गया है।

The Author

Mahesh Chandra Kaushik

भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।

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