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भारतवर्ष के पूर्वोत्तर में ‘सात बहनों’ के नाम से विश्व में विख्यात यह अंचल न जाने कब से हमें अपने आकर्षण में बाँधता रहा है।
इस संग्रह में अरुणाचल, आसाम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा की चर्चित लोककथाओं को संगृहीत किया गया है। इनमें जहाँ जल प्रलय-सृष्टि—विकास-प्रलय का क्रम दरशाया गया है वहीं वनस्पति-जगत् और जीव-जगत् से मानव के संबंध, देव-कन्या का मानव जाति को सुसंस्कृत बनाने के लिए धरती पर उतरना, मनुष्य को पेड़, पत्थर, पशु-पक्षी, सर्प आदि रूपों में बदलना भी इन कथाओं में है। कहीं रालनगाम की स्वर्ग की सीढ़ी और जोखिम भरी यात्राओं का रोमांच है तो कहीं सूर्य को कर्तव्य-बोध करवानेवाले ताफ्येओ की स्वामी-भक्ति और सूर्यग्रहण का संबंध। कहीं लोंगकोगला का पालतू पशुओं और अपने पोते के प्रति वात्सल्य व प्रेम, सूर्य की बहन मुमसी का बीज रूप में पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों को धरती पर लाना, नारा का जीवन-चरित्र आदि कथाओं के श्रापों और वरदानों की मान्यताओं भरे चमत्कार करते स्वरूप तो कहीं श्वानों का अंशदान, गोह का श्राप, जादुई पत्थर, कामाब्रांचा का न्याय और वैविध्यपूर्ण कथानक।
युगों से चली आती लोककथाओं में हम किसी भी समजा की मिट्टी को सोंधी महक पा लेते हैं। पूर्वोत्तर यानी सात बहनों की ये लोककथाएँ अपने सांस्कृतिक वैविध्य से परिपूर्ण, इतिहास का लेखा जोखा प्रस्तुत करनेवाली हैं।
स्वर्ण अनिलशिक्षा : स्नातक, स्नातकोत्तर, बी. एड., एम.ए.; ‘हिंदी साहित्य के विश्लेषण में कंप्यूटरीकृत अध्ययन की संभावनाएँ और सीमाएँ’ विषय पर शोध प्रबंध।
प्रकाशन : 16 वर्ष की उम्र में ‘कादंबिनी’ मासिक पत्रिका में प्रकाशित कविता ‘साथ चलता जुलूस’ के साथ साहित्यिक जीवन का प्रारंभ।
पत्र-पत्रिकाओं में काव्य एवं गद्य रचनाओं का प्रकाशन; ‘वनांचल की पाती’ मासिक पत्रिका का संपादन। ‘बंद मुट्ठी की रेत’ काव्य संग्रह।
कृतित्व : रेडियो धारावाहिक आसाम, मणिपुर, मिजोरम की लोककथाओं पर आधारित धारावाहिकों, पूर्वोत्तर में रामायण की परंपरा और ‘शाहनामा’ (जम्मू व कश्मीर) की लोककथाओं पर आधारित धारावाहिकों का लेखन व निर्माण।दूरदर्शन धारावाहिक/टेलीफिल्म पर्यावरण संरक्षण, विकलांगता, कश्मीर, नई पीढ़ी की दुविधा जैसे ज्वलंत व संवेदनशील विषयों पर बने धारावाहिक और टेलीफिल्में—वनकन्या, जवाब दो, इनसानी रिश्ते, आशा, खबर, नई दिशा आदि।