₹350
‘‘सच कहूँ डॉक्टर साहब’’, खालिद एकाएक गंभीर होकर बोला, ‘‘ऐसे खुशी से नाचते-गाते लोगों को देखता हूँ, तो बस मन में यही सवाल उठता है कि इतना प्यार से, इतनी खुशी-खुशी से आपस में मिलने-जुलनेवाले लोग एकाएक हैवान क्यों हो जाते हैं?’’
—अभी मनुष्य जिंदा है
क्या करे अवतार, कैसे रोए? दुःख मनाए या खुशी, यह उसकी समझ से बाहर था। किसे सच माने वह, अपनी प्यारी गौरी चाची के लिए बाल गोपाल की तसवीर लानेवाले शौकत को या बलवाइयों द्वारा बेरहमी से तोड़ी गई तसवीर को।
—मुआवजा
मैं सोच रहा था कि किस मिट्टी की बनी है यह लड़की। अपने अभावों को भी आभूषणों की गरिमा देकर अपने शरीर पर सजाए है। पूरे विश्वास के साथ मेरे सामने खड़ी है भविष्य की चुनौतियों का सामना करने।
—नंगी टहनियों का दर्द
‘‘जुगनू सी ही सही, पर मुझमें चमक है, इस अहसास को मैं बरकरार रखना चाहता हूँ। इसलिए मुंबई वापस जा रहा हूँ। थक-हारकर यदि फिर लौटा तो आशा है कि सुबह का भूला समझकर माफ करेंगे।’’
—पल पल के सरताज
‘‘चुप कर!’’ चाईजी झल्लाईं, ‘‘दंगाइयों का कोई मजहब, कोई ईमान होता है क्या? वो तो एक ही धरम जानते हैं—बदला, बरबादी, लूट और कत्ल। हमने कब किसी का क्या बिगाड़ा था, फिर हर बार मेरा ही घर क्यों उजड़ता है!’’
—फिर एक बार
उस दिन शायद पहली बार मैंने अपने पिताजी से पूछा था, ‘‘बाबा, ये हिंदू क्या होता है?’’ बाबा हँस दिए बस। दूसरे दिन यही बात मैंने जुबेर को बताई थी, तो उसने कहा था, ‘‘तू जानता है, मेरे अब्बा मुसलमान हैं और कहते हैं, मैं भी मुसलमान हूँ।’’
—सांता क्लॉज, हमें माफ कर दो
______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
या कहूँ? — 7
1. अभी मनुष्य जिंदा है — 11
2. देवदासी — 23
3. मुआवजा — 32
4. कमाऊ पूत — 41
5. मृदुला — 49
6. नंगी टहनियों का दर्द — 65
7. पल-पल के सरताज — 80
8. पप्पा जल्दी आ जाना — 95
9. फिर एक बार — 103
10. सांता लाज हमें माफ कर दो — 114
11. टीचर्स डे — 124
12. अंत का आरंभ — 137
13. बौनों का आकाश — 143
14. संज्ञाशून्य — 149
सच्चिदानंद जोशी
जन्म : 9 नवंबर, 1963
पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में अपने प्रदीर्घ अनुभव के साथ विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में कार्य। कलात्मक क्षेत्रों में अभिरुचि के कारण रंगमंच, टेलीविजन तथा साहित्य के क्षेत्र में सक्रियता। पत्रकारिता एवं संचार के साथ-साथ संप्रेषण कौशल, व्यक्तित्व विकास, लैंगिक समानता, सामाजिक सरोकार और समरसता, चिंतन और लेखन के मूल विषय। देश के विभिन्न प्रतिष्ठानों में अलग-अलग विषयों पर व्याख्यान। कविता, कहानी, व्यंग्य, नाटक, टेलीविजन धारावाहिक, यात्रा-वृत्तांत, निबंध, कला समीक्षा इन सभी विधाओं में लेखन। एक कविता-संग्रह ‘मध्यांतर’ बहुत चर्चित हुआ। पत्रकारिता के इतिहास पर दो पुस्तकों का प्रकाशन। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘सच्चिदानंद जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ’ को भी अच्छा प्रतिसाद मिला। बत्तीसवें वर्ष में विश्वविद्यालय के कुलसचिव और बयालीसवें वर्ष में विश्वविद्यालय के कुलपति होने का गौरव। देश के दो पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालयों की स्थापना से जुड़े होने का श्रेय। भारतीय शिक्षण मंडल केराष्ट्रीय अध्यक्ष।
संपर्क : sjoshi09@yahoo.com • 9205500164 • 9425507715