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इस तरह तय की हैं हमने मंजिलें,
गिर गए, गिरकर उठे, उठकर चले।
हम में से प्रत्येक महान् कार्य कर सकता है। सफलता की राह में मुश्किलें आती हैं, गिर-गिरकर सँभलना होता है और एक दिन मंजिल हमारे निकट होती है। परंतु सफलता का पहला सिद्धांत है काम—अनवरत काम। जीवन में सफलता पाने के लिए धैर्य को अपना घनिष्ठ मित्र, अनुभव को अपना बुद्धिमान परामर्शदाता तथा सावधानता को अपना बड़ा भाई बना लो—और आशा को अपना संरक्षक बनाना न भूलो।
सफल मनुष्य वही है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने ऊपर फेंकी गई ईंटों से सुदृढ़ नींव और भवन खड़ा करता है। हम सबको अपने लक्ष्यों को सामने रखकर अपनी स्वयं की सफलताओं-विफलताओं पर ध्यान देना चाहिए और अपनी गलतियों को सुधारकर पुन:-पुन: आगे बढ़ना चाहिए।
विद्वान् लेखकद्वय ने प्रस्तुत पुस्तक में जीवन की सफलता के 501 गुरुमंत्रों को सँजोया है। जैसे—
जो भी करना है, अभी करें।
अपने समय का धन की तरह प्रबंधन करें।
समस्याओं को दबाएँ, अवसरों को उभारें।
प्रशंसा सार्वजनिक रूप से करें, निंदा अकेले में करें।
जरूरतें खत्म हो सकती हैं, लालच नहीं।
आशा है, सुधी पाठक इन गुरुमंत्रों का अध्ययन-चिंतन कर अपने जीवन को नई दिशा प्रदान करेंगे।
व्यक्तित्व विकास एवं व्यवहार-प्रबंधन की पुस्तकों के सुपरिचित लेखक हैं। अमेरिका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा से एम.बी.ए. करने के उपरांत वे तैंतीस वर्ष तक भारत के प्रमुख उद्योग समूह ‘एस्कॉर्ट्स’ से संबद्ध रहे और अनेक उच्च पदों पर आसीन रहे। हिंदी-अंग्रेजी में मानव-व्यवहार से संबंधित उनकी 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। देश-विदेश में व्यवहार-प्रबंधन पर 1 हजार से अधिक सेमिनारों का आयोजन भी कर चुके हैं।