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जब ईश्वर ने पृथ्वी बनाई तो उसके दो-तिहाई हिस्से को जल देकर भर दिया । हो सकता है, इसमें उसका कुछ उद्देश्य रहा हो; किंतु हम पृथ्वीवासियों के लिए यह बड़े फायदे की बात है । इतना अधिक जल धरती के बाकी सूखे टुकड़े को वातानुकूलित रखता है और हम पृथ्वी पर रहनेवाले जीवित प्राणी सूर्य की गरमी से नष्ट होने से बचे रहते हैं । इसके अलावा इतने बड़े जलाशय की आवश्यकता प्रकृति को स्वयं के आसवन उपकरण-सूर्य की सहायता से पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के लिए थी ।
औसतन एक घन किलोमीटर समुद्री जल में लगभग चार करोड़ दस लाख टन नमक होता है । यह अनुमान लगाया गया है कि संपूर्ण जलमंडल में इतना नमक है, जो पूरे संसार को 150 मीटर मोटी नमक की परत से ढक सकता है ।
नमक के अलावा समुद्र में दूसरे खनिज भी होते हैं । एक घनमील समुद्र के पानी में पंद्रह करोड़ टन से ज्यादा खनिज होते हैं । उनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण खनिज है 'आयोडीन' । दूसरा है ' ब्रोमीन ' । संसार- भर की ब्रोमीन का 9/10 हिस्सा समुद्र में ही होता है । ब्रोमीन का उपयोग फोटोग्राफी की प्लेटों और अनेक दवाओं में होता है । इसके अतिरिक्त सागर ओषधियों का भी भंडार है ।
सागर की ऐसी ही रोचक तथा वैज्ञानिक जानकारी के लिए प्रस्तुत है-' सागर की रोचक बातें ' ।
डाँ. शिवगोपाल मिश्र ( जन्म सन् 1931) विज्ञान जगत् के जाने- माने लेखक हैं । आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. एस. -सी. (कृषि रसायन) तथा डी. फिल्. की उपाधिया प्राप्त करने के बाद इसी विश्वविद्यालय में 1956 से लेकर 1991 तक क्रमश : लेक्चरर, रीडर प्रोफेसर और निदेशक (शीलाधर मृदा विज्ञान -शोध संस्थान) पदों पर अध्यापन और शोधकार्य का निर्देशन किया । आपने सूक्ष्म मात्रिक तत्त्व, फास्फेट, जैव उर्वरक पादप रसायन अम्लीय मृदाएँ, भारतीय कृषि का विकास, मिट्टी का मोल जीवनोपयोगी मात्रिक तत्त्व नामक पुस्तकों का प्रणयन किया है, जिनमें से कई पुस्तकें पुरस्कृत भी हो चुकी हैं । आपने मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण के विषय में अनेकानेक शोधपरक निबंध प्रकाशित किए हैं । आप प्रारंभ से ही हिंदी में रुचि होने के कारण 1952 से विज्ञान परिषद्, प्रयाग से संबद्ध रहे हैं । आपने कई वर्षों तक मासिक पत्रिका ' विज्ञान ' का संपादन किया है । आप 1958 से पत्रिका' के प्रबंध संपादक है । हिंदी की वैज्ञानिक पत्रिकाओं में आपके कई सौ लेख प्रकाशित हो चुके हैं । आपने ' भारत की संपदा ' का संपादन तथा ' रसायन विज्ञान कोश ' का लेखन किया है ।ही ' विज्ञान परिषद् अनुसंधान
डॉ. दिनेश मणि
जन्म : 15 जून, 1965, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : एम.एस-सी. (गोल्ड मेडलिस्ट), डी.फिल., डी.एस-सी. (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण) तथा विज्ञान व्यास, विज्ञान रत्न, विज्ञान वाचस्पति।
संप्रति : प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
रचना-संसार : विगत तीस वर्षों से विज्ञान के लोकप्रियकरण में संलग्न। विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में लगभग 50 एवं अंग्रेजी में 12 पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न वैज्ञानिक पुस्तकों में
30 अध्याय, 105 शोधपत्र, 1000 से अधिक लोकप्रिय विज्ञान के आलेख प्रकाशित। अब तक डॉक्टरेट उपाधि हेतु 20 शोधछात्रों का निर्देशन। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी इलाहाबाद से अनेक वार्त्ताएँ प्रसारित।
सम्मान-पुरस्कार : ‘विज्ञान’ (मासिक) के कुशल संपादन हेतु उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा ‘सरस्वती नामित पुरस्कार’, ‘डॉ. संपूर्णानंद नामित पुरस्कार’, एवं ‘बाबूराव विष्णु पराड़कर नामित पुरस्कार’, केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘शिक्षा पुरस्कार’, विज्ञान परिषद् प्रयाग का ‘विज्ञान परिषद् शताब्दी सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान,
नई दिल्ली का ‘आत्माराम पुरस्कार’, ‘आई.सी.एम.आर. पुरस्कार’, विज्ञान परिषद् प्रयाग का ‘विज्ञान पत्रिका शताब्दी सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान।
संपर्क : 35/3, जवाहर लाल नेहरू रोड, जॉर्ज टाउन, प्रयागराज-211002
ई-मेल : dineshmanidse@gmail.com