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सागर खाद्य और अन्य उत्पादों का बहुत बड़ा स्रोत है । सागरीय पर्यावरण जीव -जंतुओं के निवास के लिए थलीय और ताजा पानी के क्षेत्रों से तीन गुने मे भी आधिक है । वह खाद्य का अपार भंडार तो है ही, ऊर्जा का भी असीमित स्रोत है । सागर में प्रचुर मात्रा में मैंगनीज, लोहा, निकेल, कोबाल्ट और ताँबा जैसी धातुएँ ही नहीं, चाँदी, सोना, यूरेनियम और प्लेटिनम भी इतनी है कि शताब्दियों तक हम उनका इस्तेमाल कर सकें । सागर में पेट्रोलियम उत्पादों की भी अपार मात्रा छिपी पड़ी है ।
सागर देशों को आपस में जोड़नेवाली जलराशि ही नहीं है, वरन् वह प्रत्येक देश के जीवन और राजनीति की प्रभावशाली कड़ी है । परंतु आज उसी सागर को हम जाने - अनजाने कचराघर बनाते जा रहे हैं । नतीजा यह है कि आज सागर के हर जीव के शरीर में पीड़कनाशी, क्लोरीनीकृत हाइड्रोकार्बन और मनुष्य निर्मित रेडियो धर्मिता के अंश मौजूद हैं । साथ ही पारा, सीसा और कार्बन डाइऑक्साइड भी चिंताजनक स्तर तक पहुँच गया है । मिनीमाता व्याधि इस सबका ही परिणाम है ।
प्रस्तुत पुस्तक में सागर प्रदूषण से संबंधित कारणों और संभावित निदानों का सरल -सुबोध भाषा में वर्णन किया गया है । पुस्तक विद्यार्थियों के साथ-साथ आम जनता के लिए भी परमोपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा हमारा विश्वास है ।
जन्म : 8 दिसंबर, 1929 ।
आरंभिक शिक्षा जबलपुर ( मध्य प्रदेश) में । कुछ वर्षों तक रसायनशास्त्र में शोध करने के पश्चात् हिंदी में विज्ञान लेखन । 1958 से ' विज्ञान प्रगति ' ( कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की हिंदी विज्ञान - मासिक) से संबद्ध; 1964 से पत्रिका का संपादन । दिसंबर 1989 में संपादक पद से अवकाश ग्रहण ।
हिंदी में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं के विवरणों का आकलन और तृतीय विश्य हिंदी सम्मेलन के अवसर पर ' हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रकाशन निदेशिका ' का प्रकाशन ।
विविध वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में सैकड़ों लेख प्रकाशित और रेडियो वार्त्ताएँ प्रसारित । कुछ पुरस्कृत पुस्तकें है - अनंत आकाश : अथाह सागर (यूनेस्को पुरस्कार, 1969), सूक्ष्म इलेक्ट्रानिकी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, 1987), प्रदूषण : कारण और निवारण (पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार, 1987), आओ चिड़ियाघर की सैर करें (हिंदी अकादमी, दिल्ली, 1985 - 86), विज्ञान परिषद् इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट संपादन हेतु सम्मानित ।