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"सैनिक अधिकारियों की पत्नियों को ‘मेमसाहब’ कहा जाता है। यह उच्चारण अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सैनिक पत्नियों के लिए प्रयोग होता था, जो कमोबेश आज भी इस्तेमाल हो रहा है। वर्तमान दौर की मेमसाहबें हमारी संस्कृति में रची-बसी महिलाएँ हैं, जो भारत के गाँव-शहरों से लेकर हर राज्य से आती हैं, यानी इन महिलाओं में समूचा भारत एक साथ दिखाई देता है।
ये महिलाएँ हर दो-अढ़ाई वर्ष में पति के पीछे-पीछे अपने बच्चों के साथ गृहस्थी समेटकर ‘पोस्टिंग’ पर चल पड़ती हैं। ऐसी महिलाओं के नजरिए से देश-समाज और सेना कैसी दिखती है? 1971 के युद्ध के समय या श्रीलंका में शांति सेना की भूमिका निभा रहे सैनिकों के पीछे उनकी पत्नियों का जीवन कैसा था? कारगिल युद्ध और ऑपरेशन पराक्रम के कालखंड में सैनिक पत्नियाँ किस किरदार में थीं? युद्ध काल के समय के अतिरिक्त शांति काल में तथाकथित ‘मेमसाहब’ क्या करती हैं? असलियत में इन महिलाओं की दुनिया कैसी है? इनका जीवन कैसा होता है? सीमा पर पति की तैनाती के समय अथवा किसी ऑपरेशन पर चले जाने के बाद इन महिलाओं के जीवन में क्या बदलाव आते हैं या इनका जीवन सामान्य तरीके से चलता रहता है? ‘सैनिक पत्नियों की डायरी’ में यही बताने का प्रयास किया गया है।
भारतीय शूरवीरों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर उन्हें सतत राष्ट्रधर्म निभाने की प्रेरणा देती मातृशक्ति के त्याग-समर्पण-निष्ठा और कर्तव्य-निर्वहन की ये सच्ची गाथाएँ पाठकों के मन में उनके प्रति और अधिक श्रद्धा उत्पन्न कर देंगी।"