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भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ की मूल समस्याएँ नागरिकों से जुड़ी हैं, जो आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रहीं। आजादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आजादी को ही भारत की समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सबकुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलनेवाले दिन से हमें नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं और उनकी जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। हम आजादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आएँ, की बजाय हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएँ, इस दिशा में बढ़ते चले गए— यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं।
इस पुस्तक में देश की ऐसे ही प्राथमिक और ज्वलंत समस्याओं के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। मातृभूमि की सेवा में, भारतमाता की आराधना में जो व्यक्तित्व सदैव अर्चना करते रहते हैं, हमने उनसे देश की ज्वलंत समस्याएँ रखीं और आग्रह किया कि देश में समस्याओं की तो चर्चा होती है, पर समाधान की नहीं। आप तो हमें समाधान दें। अपने भारत की प्रकृति को समझते हुए शब्दों के साधकों ने समाजकल्याण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में कुछ ठोस ‘शब्दांजलि’ परोसने का प्रयास किया है। हमने इस पुस्तक में उन्हीं के भाव और निदान की दिशा में दिए गए मार्गदर्शन को लेखबद्ध कर राष्ट्रहित में संपादन कर प्रकाशित करने का प्रयास किया है।
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अनुक्रम
प्रकाशकीय — Pgs. 5
1. ‘राजनीति’ समस्या के बजाय समाधान का हिस्सा बने —लालकृष्ण आडवाणी — Pgs. 13
2. भारत की मूल आत्मा पंचायती राज —एम. वेंकैया नायडू — Pgs. 16
3. चिंतन की धारा धरती से जुड़ी होनी चाहिए —नरेंद्र मोदी — Pgs. 23
4. हमारी अर्थव्यवस्था की प्राणदायिनी है भारतीय कृषि —राजनाथ सिंह — Pgs. 27
5. भारतीय तकनीक ही सभ्यता के विकास का मूल स्रोत —डॉ. मुरली मनोहर जोशी — Pgs. 32
6. राष्ट्रपति शासन प्रणाली पर विचार करने का समय आ गया है —सुषमा स्वराज — Pgs. 45
7. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी —मृदुला सिन्हा — Pgs. 50
8. सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण —जगमोहन — Pgs. 57
9. सप्तसिंधु का अभिनव सप्तशील —डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी — Pgs. 68
10. भारत में संसदीय लोकतंत्र समस्या और समाधान —डॉ. सुभाष कश्यप — Pgs. 74
11. राष्ट्र-जागरण का गांधी-मंत्र —देवेंद्र स्वरूप — Pgs. 80
12. विविधता में एकता —मा. गो. वैद्य — Pgs. 88
13. प्रबल आकांक्षा और तत्परता बिना नया बदलाव असंभव —वसुंधरा राजे — Pgs. 93
14. जवाबदेही लोकतंत्र का प्राणतत्त्व है —डॉ. रमन सिंह — Pgs. 98
15. शासन संचालन में जन भागीदारी जरूरी —शिवराज सिंह चौहान — Pgs. 106
16. इसलाम की मूल मान्यताओं पर बहस से संबंध सुधरने के आसार बढ़ेंगे —बलबीर पुंज — Pgs. 111
17. ग्राम विकास को संस्कृतिपरक बनाइए —हृदयनारायण दीक्षित — Pgs. 117
18. अल्पसंख्यकवाद से किस प्रकार निपटा जाए? —मुजफ्फर हुसैन — Pgs. 122
19. राजनीति में अध्यात्म का महत्त्व —सुधांशु त्रिवेदी — Pgs. 131
20. भारतीय दर्शन-परंपरा और वामपंथ —शंकर शरण — Pgs. 140
21. चौथे स्तंभ से राष्ट्र की अपेक्षा —चंदन मित्रा — Pgs. 156
22. सामाजिक समरसता का अर्थ है सामाजिक सम्मान —रमेश पतंगे — Pgs. 161
23. समूचे विश्व की निगाह भारत की ओर —जे.एस. राजपूत — Pgs. 168
24. देर हुई तो नतीजे भयावह होंगे —डॉ. ज्ञान प्रकाश पिलानिया — Pgs. 174
25. सबसे बेहतर संसदीय प्रणाली —डॉ. एम. रामा जॉयस — Pgs. 182
26. वंदेमातरम् : भारतीय राष्ट्रीयता की पहचान —स्वपन दासगुप्ता — Pgs. 188
27. धर्मांतरण पर प्रतिबंध ही एकमात्र समाधान —ए. सूर्यप्रकाश — Pgs. 191
28. बाजार हावी, संपादक गायब —तरुण विजय — Pgs. 198
29. भारतीय सार्वजनिक जीवन की पहचान है हिंदुत्व —संध्या जैन — Pgs. 205
30. भ्रष्टाचार से निपटने के लिए दृढसंकल्प की आवश्यकता —जोगिंदर सिंह — Pgs. 211
31. निर्धनता रेखा की समीक्षा आवश्यक —रुद्रदत्त — Pgs. 217
32. सशक्त भारत दृष्टिकोण का विषय है —अवधेश कुमार — Pgs. 225
33. पत्रकारिता राष्ट्रीयता का आधारस्तंभ है —डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री — Pgs. 231
34. विश्वगुरु भारत राष्ट्र की आत्मा का साक्षात्कार करना होगा —संजय जोशी — Pgs. 240
35. कठोर ‘दंडनीति’ से दूर होगी ‘देश-दुर्दशा’ —नंदकिशोर शुक्ल — Pgs. 255
36. विश्व व्यापार संगठन : चुनौतियाँ स्वीकार करनी होगी —सर्वदानंद आर्य — Pgs. 260
37. भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दशा एवं दिशा की जरूरत —डॉ. शरद जैन — Pgs. 266
प्रभात झा
जन्म : सन् 1958, दरभंगा (बिहार)।
शिक्षा : स्नातक (विज्ञान), कला में स्नातकोत्तर, एल-एल.बी., पत्रकारिता में डिप्लोमा (मुंबई)। जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट (उ.प्र.) से डी.लिट की उपाधि प्राप्त।
कृतित्व : 'शिल्पी' (तीन खंड), 'अजातशत्रु दीनदयालजी', 'जन गण मन' (तीन खंड), 'समर्थ भारत', 'गौरवशाली भारत', कृतियों के अलावा विभिन्न स्मारिकाओं एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित। दैनिक भास्कर, नई दुनिया, हरिभूमि, स्वदेश, ट्रिब्यून, प्रभात खबर, राँची एक्सप्रेस, आज एवं वार्ता के नियमित स्तंभकार तथा राजनैतिक विश्लेषक के रूप में सतत लेखन कार्य जारी। हिंदी 'स्वदेश' समाचार-पत्र में सहयोगी संपादक रहे। वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित संस्थानों में नियमित आमंत्रित।
संप्रति : राज्यसभा सांसद तथा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (भारतीय जनता पार्टी) एवं संपादक 'कमल संदेश' (हिंदी एवं अंग्रेजी)।
इ-मेल : prabhatjhabjp@gmail.com