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शोध ग्रंथ ‘समाज और राज्य : भारतीय विचार’ लंबे अंतराल के बाद पुनः प्रकाशित हो रहा है। इस विषय पर यह अकेला ग्रंथ है, जो मूल संस्कृत स्रोतों पर आधारित है। यहाँ लेखक ने अधिकांश आधुनिक विद्वानों की खंडन-मंडन शैली का अनुकरण न करके भारतीय सामाजिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं को प्रत्येक बात के लिए मूल ग्रंथों का संदर्भ देकर प्रस्तुत किया है।
समाज-व्यवस्था का वर्णाश्रम-व्यवस्था के साथ गहरा संबंध है। व्यक्तिगत उन्नति ही इसका उद्देश्य था। आदर्श जीवन की रचना ही इसीलिए की गई। इससे बहुत लाभ हुए। इसके द्वारा समाज में अधिकार-विभाजन तथा शक्ति-संतुलन हुआ और संघर्ष-निवारण भी। कर्तव्य, अधिकार, योग्यता, पात्रता पर ध्यान दिया गया और समाज पर कर्म का नियंत्रण रखा गया। वर्णव्यवस्था से एक लाभ यह भी था कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय मिलने में कठिनाई नहीं होती थी।
भारतीय संस्कृति के प्रेमियों को इस ग्रंथ पर गर्व होना चाहिए। यह प्राचीन विचारों, सिद्धांतों एवं परंपराओं का एक अद्भुत भंडार है, जिसमें हमें अपनी ज्ञान-वृद्धि के लिए बहुत सी सामग्री मिलती है। लेखक ने अनेक ग्रंथों का पारायण कर हमारी समस्याओं पर गंभीर रूप से विचार किया है। इसके लिए भारतीय, विशेषकर हिंदू समाज उनका कृतज्ञ रहेगा।
जन्म : 10 अप्रैल, 1924 किशनगढ़ रियासत में।
पिता श्री मिट्ठनलाल मीतल, विधि सचिव, मध्य भारत।
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. (राजनीति शास्त्र), 1944-51 रा.स्व. संघ के प्रचारक, 1951 से अध्यापन कार्य (अमेठी, उदयपुर), 1960 इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘भारतीय समाज रचना’ विषय पर डॉक्टरेट मिली। हिंदी माध्यम से पहला शोधप्रबंध आग्रहपूर्वक लिखा।
कृतित्व : 1961-1984 इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य, रीडर पद से सेवानिवृत्त। ‘राष्ट्रधर्म’ मासिक पत्र का अवैतनिक संपादन; 1975 आपातकाल में मीसा बंदी। अनेक शोधपत्र लिखे एवं कौटिल्य पर एक गवेषणात्मक ग्रंथ, राजनीतिशास्त्र पर कई पुस्तकों के रचयिता, मनुस्मृति का विवेचनात्मक अध्ययन प्रकाशित।
स्मृति शेष : 21 अगस्त, 2010 (दिल्ली)