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भद्र पुरुष्! तेरी जीवन-कथा को श्रवणरन्ध्रों से श्रवण करने के साथ-साथ कवि ने स्वयं नयनावलोकित भी किया है। आद्योपान्त शौर्य, पराक्रम एवं वीरता की प्रतिमूर्ति, राष्ट्रनिष्ठा, देशधमर्ता एवं स्वकर्तव्य-परायणता से युक्त निर्भयतापूर्ण मातृभूम की आन, बान, शान एवं अस्मता के साथ ही राष्ट्रीय नवोन्मेष्ा को दृष्टगोचर करते हुए अपनी माँ-बहनों की लाज-लज्जा एवं उनके अबोध नन्हे-मुन्ने बाल वत्सों के सहायतार्थ स्वतंत्रता का दीवाना असामाजिक क्रीत आतंकी अरि तत्त्वों के साथ रणभूम में संग्राम करते हुए मातृभूम की बलिवेदी के अजिर मध्य यज्ञशाला के हवनीय कुंड में अपने प्राणोत्सर्ग करते हुए आहुति की तरह स्वयं को स्वाहा कर देनेवाले उस प्रचण्डवीर के पराक्रमशील कर्तव्यों को मेरे एवं कवि के अतिरिक्त समूचा भारतवष्र्ा नम आँखों से एकमञ्चीय शिक्षाप्रद एवं उत्कष्र्ापूर्ण ओजस्वता के साथ चलचित्र की तरह इस काव्य के माध्यम से देख रहा है।
राष्ट्रप्राण! तुझ से यह भी अज्ञात नहीं था कि हमारी इस भव्य भरत-भूमि भारत माता को प्राप्त करने हेतु विदेशी आक्रामकों ने कितने ही दुर्भावनापूर्ण तरीके से प्राप्त करने की कोशिश की है। किंतु इस भारत माँ के लाल लड़ैते परम प्रचण्डवीर सैनिक अपने कन्धों पर अपनी माँ एवं मातृभूमि की रक्षा के भार को सहर्ष सहने में समर्थ अपने प्राणों की बाजी भी लगाने को प्रतिपल तत्पर हैं।
एक वीर हुतात्मा की प्रेरणादायी जीवन-कथा, जो पठनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।
पिता : श्री मदनलाल शर्मा
माता : श्रीमती शांति देवी
जन्म : गाँव : जटौरा, पत्रालय : बलदेव, जनपद-मथुरा (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (संस्कृत-हिंदी), आचार्य-साहित्य निंबार्क वेदांत।
शोध : बीसवीं शताब्दी के ब्रजस्थ संस्कृत कवियों की रचनाओं का समीक्षात्मक अध्ययन।
रचनाएँ : हिंदी महाकाव्य ‘समर्पण’, ‘ममता का आँगन’, ‘ममता का आँचल’, ‘ममता का सागर’, ‘ममता का मंदिर’, ‘प्यार का मंदिर’ (सभी खंडकाव्य); ‘काव्य पीयूष’ (मुक्तक); विभिन्न शिक्षण संस्थाओं की प्रार्थनाएँ एवं अभिनंदन-पत्र। ‘श्री यमुना लहरी’, ‘राज राजेश्वरी काव्यम्’ एवं ‘बलदेव वैभवम्’ (संस्कृत खंडकाव्य)।
अनुभव : विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण कार्य।
संप्रति : भारतीय थल सेना में धर्मगुरु पद पर सेवारत।