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‘समय के सरोकार’ किसी जड़ मतवाद पर आधारित शास्त्रा्य पुस्तक नहीं है। यह एक ऐसे व्यक्ति का शोध-प्रबंध है, जिसने अपना संपूर्ण जीवन धूल भरे गाँवों तथा गंगा के कटावग्रस्त कछारों और तटों पर बिताया है। विभिन्न जमीनी आंदोलनों में इस व्यक्ति की सक्रियता और सहभागिता का जिक्र करना इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि यह गरीबों और हाशिए पर पहुँचे उत्पीड़ित जनों को उचित स्थान दिलाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दरशाता है।
इस पुस्तक की रचनाएँ व्यवस्था और सत्ता के नग्न आक्रमण एवं शोषण के विरुद्ध उनके संघर्षों तथा आकांक्षाओं की जीवंत कक्षाएँ हैं। उनकी सरल, स्पष्ट और बेबाक लेखनी हमें अवगत कराती है कि बड़े शहरों के वैभवशाली वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर देश की जो तस्वीर हमारे सामने आती है, वह जमीनी सच्चाई से कितनी अलग है।
जमीनी सच्चाइयों से जुड़ा अनिल प्रकाश का ज्ञान हमें ऐसी नीतियों के निर्धारण में सहायता प्रदान करेगा, जो यथार्थ के करीब हैं और जिनका उद्देश्य समाज के निचले तबकों को ऊपर के तबकों के बराबर लाना है। यह एक सपने की तरह लग सकता है। लेकिन अनिल प्रकाश जैसे व्यक्ति ऐसे सपने देखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संभव हो सकता है।
—कुलदीप नैयर
जन्म : 18 फरवरी, 1952।
मूलत: समाजकर्मी। विगत पच्चीस वर्षों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए आलेख, टिप्पणियाँ तथा स्केच लेखन।
संप्रति : शोध एवं लेखन में सक्रिय।