₹500
विष्णु प्रभाकरजी ने बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी लगभग सभी विधाओं में साहित्य सृजन किया है। इनमें कहानी, नाटक, यात्रा-वृत्तांत, जीवनियाँ आदि सभी कुछ हैं। बच्चों के लिए लिखते समय उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि जो भी लिखा जाए, बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर लिखा जाए—जो रोचक भी लगे और शिक्षाप्रद भी हो। विष्णुजी ने अपने नाटकों में बच्चों को नई-से-नई बात बताने का प्रयास किया। उनका मानना था कि परी-कथाओं के कल्पित संसार में बच्चों को नहीं भटकना चाहिए। उन्हें विज्ञान की दुनिया में घुमाने पर हम पाएँगे कि वह बहुत रोचक और सुंदर है। साथ-साथ उनकी यह कोशिश रही कि बच्चों को आज के समाज और जीवन की बातें भी बताएँ। आम जीवन के रोचक प्रसंगों को लेकर नाटक की रचना इस प्रकार की जाए कि उसे पढ़ने में तो आनंद आए ही, साथ ही इसे मंच पर आसानी से खेला भी जा सके।
विष्णुजी के नाटकों की भाषा सरल है और संवाद संक्षिप्त व प्रभावी हैं। शिक्षा कहीं भी ऊपर से आरोपित नहीं लगती है, बल्कि वह सहज अभिनय और कथा के अंदर से स्वतः प्रस्फुटित होती है। मंच पर ज्यादा सजावट-बनावट का चक्कर भी नहीं है। बच्चे स्वयं ही सरलता से अभिनय कर सकते हैं।
बालमन को प्रेरित-संस्कारित करनेवाले अभिनेय बाल नाटकों का अनुपम संग्रह।
______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
विष्णु प्रभाकरजी के संपूर्ण बाल नाटक —Pgs. 5
1. ऐसे- ऐसे —Pgs. 9
2. माँ का बेटा —Pgs. 16
3. मोटे लाला —Pgs. 25
4. हड़ताल —Pgs. 33
5. पानी आ गया —Pgs. 44
6. हँस लो, गा लो, आज दीवाली —Pgs. 51
7. बाल वर्ष जिंदाबाद —Pgs. 58
8. गजनंदन लाल दक्खन गए —Pgs. 66
9. पुस्तक-कीट —Pgs. 76
10. रामू की होली —Pgs. 84
11. सफाई —Pgs. 90
12. चोर हाट —Pgs. 97
13. ईमानदार लड़का —Pgs. 105
14. बहादुर बेटा —Pgs. 113
15. साहसी संदीप —Pgs. 117
16. जादू की गाय —Pgs. 124
17. दादा की कचहरी —Pgs. 148
18. भूगोल के मास्टर —Pgs. 163
19. काबुलीवाला —Pgs. 172
20. लालची सेठ —Pgs. 184
21. रिहर्सल —Pgs. 189
22. दो मित्र —Pgs. 195
23. चतुर सियार —Pgs. 200
24. सत्यवादी बालक —Pgs. 206
25. मिट्टी का मोर —Pgs. 215
26. पंच परमेश्वर —Pgs. 221
27. न्याय —Pgs. 229
28. गुरु नानक —Pgs. 237
29. युधिष्ठिर की सच्चाई —Pgs. 242
30. भीम का बल —Pgs. 250
31. अर्जुन की एकाग्रता —Pgs. 258
अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिए प्रसिद्ध रहे श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा पंजाब में हुई। उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बी.ए. भी किया। विष्णु प्रभाकरजी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियाँ हिंदी को दीं। उनकी ‘आवारा मसीहा’ सर्वाधिक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सदृश अनेक देशी-विदेशी पुरस्कार मिले। प्रसिद्ध नाटक ‘सत्ता के आर-पार’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘शलाका सम्मान’ भी। उन्हें उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘गांधी पुरस्कार’ तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया। विष्णु प्रभाकरजी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करनेवाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य-साधनारत रहे। स्मृतिशेष : 11 अप्रैल, 2009।