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स्वतंत्रता के बाद सामाजिक जीवन को धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म-समभाव का लबादा ओढ़ाकर हमने जो सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने का संकल्प लिया था उसे हमारे स्वयंभू नेताओं और राजनीतिज्ञों ने निजी स्वार्थ की आग में बेरहमी से भून डाला । स्वातंत्र्य पूर्व का, एकता- अखंडता के सूत्र में बँधा भारत कुछ वर्षों बाद ही विघटन और बिखराव की पीड़ा में कराहने लगा । जातीयता और प्रांतीयता का नारा बुलंद करनेवालों की खूब बन आई । फूट के बीज बोनेवालों की जमात दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और सारा देश विनाश के कगार पर पहुँचा नजर आने लगा ।
यद्यपि हमारे अनेक विचारक, दार्शनिक, साहित्यकार और समाज- सुधारक भाईचारे और सद्भाव का वातावरण बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं, फिर भी कुछ विघटनकारी शक्तियाँ आपसी मनमुटाव और टकराव की स्थिति पैदा कर अलगाववाद को हवा देते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही हैं ।
आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है देश को विघटन से बचाने की, उसे फिर से एकता- अखंडता के सूत्र में बाँधने की । इस संकलन की कहानियों का विषय व क्षेत्र सांप्रदायिक सद्भाव और असद्भाव दोनों की अलग- अलग खोज करना है । साथ ही ये कहानियाँ एक अखंड राष्ट्र के निर्माण की कल्पना से हमारी निर्जीव नसों में नए रक्त का संचार भी करती हैं ।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।