"सामाजिक समरसता एक विस्तृत विचार है। इस सोच के साथ भावनात्मकता भी जुड़ी हुई है। समरस हो जाना, यानी एकरूप हो जाना-न कोई छोटा, न कोई बड़ा।
समाज को जोड़ने का काम साहित्य बखूबी करता है। इस परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत पुस्तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेखक ने पौराणिक कथाओं के माध्यम से जहाँ एक ओर समाज में अस्पृश्यता मिटाने, सद्भाव पैदा करने और जनमानस को जाग्रत् करने का प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर महापुरुषों के महान् अवदान और प्रेरक कथाओं के माध्यम से भी समाज में नई चेतना जगाने की पुरजोर कोशिश की है। ये प्रेरक कथाएँ जन-मन में जागरूकता बढ़ाने और भेदभाव मिटाने की दिशा में बड़ी असरदार हैं। व्यक्ति-से-व्यक्ति और समाज-से-समाज जोड़ने का काम संतों, मनीषियों, महापुरुषों की वाणियाँ और कथाएँ करती हैं, जिनकी संरचनात्मक सृष्टि इसमें आद्यंत हुई है।
पुस्तक की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि सामाजिक समरसता के महान् उन्नायकों में कबीर, तुलसीदास, रविदास, स्वामी श्रद्धानंद, स्वामी परमहंस, महर्षि अरविंद, महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. भीमराव आंबेडकर, महात्मा गांधी, वीर सावरकर आदि की कार्य-शैली और समाज में अहम भूमिका निभाने वाले विशिष्ट संस्थानों की उपादेयता का भी उल्लेख किया गया है। यह पुस्तक समाज में मानसिक परिवर्तन के साथ सभी को एकसूत्र में पिरोने तथा सामाजिक समरसता मजबूत करने की नई दिशा-दृष्टि देगी- ऐसा विश्वास है।"
राष्ट्रवादी यशस्वी कवि-आलोचक डॉ. राहुल हिंदी-भाषा-साहित्य के अध्येता हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना पर अब तक इनकी 65 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें ‘महानायक-सुभाष’, ‘जंगल होता शहर’, ‘कहीं अंत नहीं’ एवं उत्तर रामकथा से संबद्ध ‘युगांक’ (प्रबंध-काव्य) बहुचर्चित हैं। ‘युगांक’ को लोकार्पित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने कहा था—‘इसमें राष्ट्रीय चेतना का प्रबल स्वर है, इससे हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक एकता भी मजबूत होती है।’
इनके अलावा ‘महाभारत’, ‘रामायण’ और ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की मूलकथा (दो खंड), भूमिका लेखक सुप्रसिद्ध साहित्य- मनीषी एवं सांसद डॉ. कर्ण सिंह, संपादित कृतियाँ ‘20वीं सदी : हिंदी की मानक कहानियाँ’ (चार खंड) और ‘20वीं सदी : हिंदी के मानक निबंध’ (दो खंड)। आलोचनात्मक ग्रंथ प्रसाद के ‘मानक गीत’, ‘गिरिजाकुमार माथुर : काव्यदृष्टि और अभिव्यंजना’ तथा ‘शमशेर और उनकी कविता’ विशेष उल्लेखनीय हैं।
डॉ. राहुल (राममोहन श्रीवास्तव) का जन्म 2 अक्तूबर, 1952 में उत्तर प्रदेश, वाराणसी के खेवली गाँव में हुआ। हिंदी अकादमी, दिल्ली एवं देश की अन्य अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
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