₹75
प्रस्तुत पुस्तक में ऐतिहासिक तथ्यों के ढाँचे पर अपनी भाषा का रंग चढ़ाकर चंद्रगुप्त का चरित्र लिखा गया है। नायक की एकध्येयनिष्ठा ने स्वयं ही उसमें प्राण-प्रतिष्ठा की है। कुछ घटनाओं का वर्णन पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लिखे हुए इतिहास से मेल नहीं खाता है। प्रस्तुत यह वर्णन कल्पना के आधार पर न होते हुए अपने प्राचीन तथ्यों तथा भारतीय विद्वानों द्वारा दी हुई आधुनिक खोजों के आधार पर है। जिनके लिए यह पुस्तक लिखी गई है, उन्हें सब प्रकार के ऐतिहासिक तथ्यों के वन में भ्रमण कराने की आवश्यकता नहीं है। इतना जानना पर्याप्त है कि यूरोपियन विद्वानों द्वारा प्रयत्नपूर्वक एवं उनका अंधानुकरण करनेवाले भारतीय विद्वानों द्वारा अनजाने में फैलाए हुए अंधकार को नष्ट करनेवाले ऐतिहासिक शोध के सूर्यप्रकाश में देखी हुई ये सत्य घटनाएँ हैं। —दीनदयाल उपाध्याय
जन्म : 25 सितंबर, 1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चंद्रभान में।
पं. दीनदयाल एक प्रखर राष्ट्रवादी, चिंतक, विचारक व लेखक थे। उनका मानना था कि समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास और उन्नयन करने से ही समाज का उत्थान होगा। यही भाव उनके द्वारा प्रणीत ‘एकात्म मानववाद’ के सिद्धांत में निरूपित है।
उन्होंने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी.एस-सी., बी.टी. करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गए। अतः कॉलेज छोड़ने के तुरंत बाद वे संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बनकर राष्ट्रकार्य में प्रवृत्त हो गए।
सन् 1951 में भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके मंत्री बनाए गए। दो वर्ष बाद सन् 1953 में भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए और लगभग 15 वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसंबर 1967) में वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी, 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय स्टेशन के आसपास अज्ञात व्यक्तियों ने उनकी हत्या कर दी।
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं—
• दो योजनाएँ ज़् राजनीतिक डायरी ज़् भारतीय अर्थनीति ज़् सम्राट् चंद्रगुप्त
• जगद्गुरु शंकराचार्य ज़् एकात्म मानववाद।