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शैवाल, एल्गी (Algae) या काई की संरचना अपेक्षाकृत अति सरल होने के कारण उन्हें एक कोशिकावाला पादप माना जा सकता है। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। शैवाल स्वच्छ जल (तालाब, पोखर, झरना) और लवणीय जल (समुद्री जल) में मुख्यतया पाए जाते हैं। कुछ शैवाल कीचड़ में भी मिलते हैं। इनमें वास्तविक जड़ें, तना, पत्ती व संवहन ऊतक नहीं पाए जाते हैं तथा ये विश्व के सभी भागों में पाए जाते हैं। कुछ शैवाल बर्फ पर, पेड़ों के तनों, चट्टानों तथा अधिपादप के रूप में दूसरे पौधों पर भी पाए जाते हैं। ये कई रंगों के, यथा हरे, नील-हरित, भूरे तथा लाल रंग के भी होते हैं तथा इनमें विद्यमान वर्णकों तथा रासायनिक अवयवों के आधार पर ये कई क्षेत्रों, यथा औषधीय, कृषि, ऊर्जा, मत्स्यपालन, उद्योग, पर्यावरण सुधार तथा अन्य क्षेत्रों में उपयोगी हैं।
इस बहु-उपयोगी पुस्तक में शैवाल की परिभाषा, शैवाल विज्ञान का इतिहास, वर्गीकरण, सामान्य लक्षण, पर्यावास, खाद्योपयोगी शैवाल, औषधीय उपयोग, जैव उर्वरक, जैव ईंधन, शैवालीय ऊर्जा तथा पर्यावरण शोधन में अवदान, समुद्री शैवाल की वाणिज्यिक खेती एवं उसके विविध आयाम तथा अनेक तत्संबंधित विषयक तकनीकी जानकारी सरल एवं बोधगम्य भाषा में यथोचित श्वेत-श्याम एवं रंगीन चित्रों सहित प्रदान करने का सुप्रयास किया गया है, जिससे सभी वर्ग के सुधी पाठक लाभान्वित हो सकें।
डॉ. वैभव ए. मंत्री—सीएसआईआर-सीएसएम सीआरआई, भावनगर में वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रयुक्त शैवाल विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी प्रभाग के प्रमुख हैं। उन्हें दो दशक से अधिक वर्षों का प्रयुक्त शैवाल विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य का वृहद् अनुभव प्राप्त है। उनका शोध समूह आर्थिक दृष्टि से उपादेय समुद्री शैवालों की कृषि के उन्नत तरीके विकसित करने हेतु सक्रिय रूप से कार्यरत है तथा इस कार्य में सफलता भी प्राप्त की है। डॉ. मंत्री को शोधकार्य हेतु दो पेटेंट भी प्राप्त हैं तथा उनके 85 शोधपत्र भी प्रकाशित हैं। उनके निर्देशन में कई शोधार्थी शोध कार्य कर रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। तकनीकी कार्य हेतु उन्होंने विदेश यात्रा भी की है।
डॉ. डी.डी. ओझा—विगत 45 से अधिक वर्षों से हिंदी में विज्ञान लेखन एवं विज्ञान लोकप्रियकरण में सक्रिय अवकाश प्राप्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी. डी. ओझा ने न केवल विज्ञान के विविध विषयों पर मौलिक शोध कार्य कर अनेक शोध-पत्र, वरन सैकड़ों आलेख तथा विज्ञान के पुरातन एवं अद्यतन विविध विषयों पर 70 से अधिक पुस्तकें भी जनमानस में विज्ञान-चेतनार्थ प्रकाशित की हैं। वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल के सदस्य एवं अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विज्ञान संस्थाओं के फेलो हैं। उत्कृष्ट विज्ञान लेखन हेतु उन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानोपाधियों से समादृत किया गया है। तकनीकी कार्य हेतु उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की है।