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प्रो. देवेंद्र स्वरूप एक निमित्त हैं, जो राष्ट्रीय हैं। जिनमें सांस्कृतिक प्रवाह है। जिनमें गांधी और राष्ट्रीयता का संगम है। उसे दूसरी तरह से भी कह सकते हैं। भारत की सनातन यात्रा में जो-जो और जब-जब प्रवाह पैदा हुए, उसे अगर समझना हो तो देवेंद्र स्वरूप को पढ़ना जरूरी होगा। उन्हें सुनना भी ऐसा अनुभव होता है मानो इतिहास की तरंगों में आप खेल रहे हों।
जिन्हें यह भ्रम है कि राष्ट्रीयता की संघ धारा में बौद्धिक विमर्श कर सकने लायक व्यक्ति नहीं होते, वे प्रो. देवेंद्र स्वरूप को जानें और समझें। जैसे ही वे ऐसा करेंगे, उनका भ्रम गिर जाएगा। आग्रह की वह दीवार ढह जाएगी। सामने होगा खुला मैदान, जो संवाद का होगा।
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अनुक्रम
प्रस्तावना — Pg. 5
जीवन यात्रा
संक्षिप्त परिचय — Pg. 13
संवाद
प्रथम सत्र : स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा और नेहरू का मूल्यांकन — Pg. 61
द्वितीय सत्र : त्रयी विद्या एवं गीता का माहात्म्य — Pg. 74
प्रतिनिधि सांस्कृतिक लेख
1. भारतीय संविधान की भूमिका — Pg. 85
2. राष्ट्रीयता की आधारभूमि — Pg. 90
3. गांधीजी का ऐतिहासिक योगदान — Pg. 95
4. राष्ट्र ही भाऊराव का सर्वस्व था — Pg. 100
5. हिंद स्वराज में या लिखा है — Pg. 113
6. सभ्यताओं के संघर्ष में भारत मुय खिलाड़ी है — Pg. 120
7. एक नए अवतार की प्रतीक्षा में भारत — Pg. 127
8. सरस्वती तट से निकली सांस्कृतिक जय-यात्रा — Pg. 133
9. भारत की ज्ञानयात्रा में गीता का महव — Pg. 141
10. हिंदू : बदलते अर्थ, सिकुड़ती सीमाएँ — Pg. 148
11. हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक रामजन्मभूमि मंदिर — Pg. 155
12. विध्वंस पर सृजन का जयनार — Pg. 163
13. भारतीय राजनीति : तब और अब — Pg. 171
14. सौ-सौ नामरूपों में प्रस्फुटित सनातन धर्म — Pg. 177
15. भति से समाज का कायाकल्प — Pg. 188
16. संस्कृति प्रवाह की धमनियाँ हैं मेले — Pg. 194
जितेन्द्र तिवारी का परिचय एक पत्रकार व लेखक के पहले एक संवेदनशील, राष्ट्रवादी सोच और संबंधों के प्रति बेहद संजीदा व्यक्ति के रूप में है। लगभग 20 साल के अपने पत्रकारीय जीवन में जितेन्द्र तिवारी ने अपने लेखों और रिपोर्टों के जरिए पत्रकार-जगत् में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। चाहे राजनीतिक रिपोर्ट हो या फिर घटनाप्रधान या फिर किसी खास विषय पर कुछ लिखना हो, सभी विषयों पर उनकी कलम सहज ही चलती है। गुजरात में महाभूकंप, केदारनाथ में जल प्रलय, बिहार में चुनाव और आंध्र प्रदेश में गोवंश की हत्या पर उनकी रिपोर्ट बेहद संजीदा और सजीव रही है। गोवंश पर उनके द्वारा संपादित पुस्तकें बेहद चर्चित रहीं। लंबे समय तक ‘पाञ्चजन्य’ (साप्ताहिक) में काम करने के बाद इस समय वे ‘यथावत’ (पाक्षिक) पत्रिका के ब्यूरो प्रमुख हैं।