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‘स्लमडॉग मिलियनेयर ' के लिए ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब और बाफ्टा पुरस्कार जीतकर ए. आर. रहमान अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रिटी बन गए हैं और ' पूरब के मोजार्ट ' कहे जा रहे हैं । भारत में वे अपनी पहली फिल्म ' रोजा ' से ही सुपर स्टार बन गए । पिछले दो दशक में उन्होंने स्टेज म्यूजिकल ' बॉम्बे ड्रीम्स ' और गैर-फिल्मी एलबम ' वंदे मातरम् ' के अलावा ' कादलन ', ' बॉम्बे ', ' रंगीला ', ' दिल से ', ' ताल ', ' अलैपायुतु ', ' जुबैदा ', ' लगान ', ' रंग दे बसंती ' और ' जोधा अकबर ' सरीखी फिल्मों में भी अविस्मरणीय संगीत दिया है । एक लीजेंड बन चुके रहमान लोगों की नजरों से बचते हैं ।
इस पुस्तक में पहली बार ए. आर. रहमान की संघर्षपूर्ण कहानी दी गई है । जब रहमान-यानी दिलीप-मात्र नौ साल के थे, उनके पिता प्रतिभाशाली म्यूजिक अरेंजर आर.के. राजशेखर की त्रासदपूर्ण मृत्यु हो गई । इसलिए घर की पूरी जिम्मेदारी उनके यानी दिलीप के कंधे पर आ गई । संघर्ष करते हुए रहमान संगीत जगत् के पुराने नियमों को तोड़ते हुए लोकप्रियता की बुलंदी तक पहुँचे । यह पुस्तक हमें सीधे रहमान के अप्रतिम संसार में ले जाती है-वे रात में ही संगीत की रचना और रिकार्डिंग करते हैं; परफेक्शन में विश्वास करते हैं, जिसके कारण निर्देशकों को एक गीत के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है ।
रहमान, उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों और साथ काम करनेवाले लोगों के साथ किए गए व्यापक साक्षात्कारों के आधार पर यह जीवनी लिखी गई है । इसमें संगीत के जादूगर, ' पद्म भूषण ' से विभूषित ए. आर. रहमान के जीवन के तमाम अनछुए पहलुओं को शामिल किया गया है, जिन्हें पढ़कर उनके प्रशंसक निश्चित रूप से आनंदित होंगे ।
तमिलनाडु के वेल्लोर में जनमीं कामिनी मथाई ने चेन्नई के वूमेंस क्रिश्चियन कॉलेज से अंग्रेजी में ग्रेजुएशन और मद्रास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता व जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएशन किया । उन्होंने पत्रकारिता में अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1 998 में ' न्यू इंडियन एक्सप्रेस ' में फीचर लेखक के रूप में की और दस साल तक उससे जुड़ी रहीं । संप्रति वे ' टाइम्स ऑफ इंडिया ' में हैं । कामिनी मथाई अपने पति फिलिप और बेटे अदीव के साथ चेन्नई में रहती हैं । यह उनकी पहली पुस्तक है ।