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Sangh Aur Swaraj   

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Author Ratan Sharda
Features
  • ISBN : 9789353224080
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ratan Sharda
  • 9789353224080
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 120
  • Hard Cover
  • 200 Grams

Description

पिछले कुछ समय से राजनीतिक मजबूरियों के कारण वामपंथी और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका के विषय में दुष्प्रचार कर रहे हैं और जनसेवा में इसके बेहतरीन रिकॉर्ड पर कीचड़ उछाल रहे हैं। यह पुस्तक हमें बताती है कि संघ अपने जन्म से ही स्वराज के प्रति समर्पित था। डॉ. हेडगेवार का जीवन और वह शपथ, जो स्वयंसेवक लेते थे, स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं। इस स्वतंत्रता को स्वराज में बदलने के लिए भारत को अनुशासित और साहस रखनेवाले युवाओं की आवश्यकता थी, जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हों। ब्रिटिश दस्तावेज स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि वे स्वतंत्रता संग्राम में संघ की बढ़ती ताकत को लेकर सतर्क थे। स्वतंत्रता का आंदोलन 15 अगस्त, 1947 को ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ (भाग्य के साथ मुलाकात) से समाप्त नहीं हुआ, बल्कि शुरू हुआ अंतहीन अँधेरी रातों का भयावह सिलसिला, जब सुरक्षाबलों के अतिरिक्त सबसे संगठित बल के रूप में संघ के कार्यकर्ताओं ने तबाह हुई लाखों लोगों की जिंदगी से जो कुछ बचा सकते थे, उसके लिए अपने प्राणों को खतरे में डाला। यह फैसला भारत के लोगों और इतिहास को करना है कि साहस की ऐसी काररवाई देशभक्ति थी या सांप्रदायिक। लेखक अन्य तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं, जिनके कारण हमें स्वतंत्रता मिली और यह रेखांकित करते हैं कि स्वाधीनता किसी एक आंदोलन या काररवाई का परिणाम नहीं थी, बल्कि एक लहर के साथ धीरे-धीरे बढ़ी, जिसका निर्माण भारत के महान् आध्यात्मिक गुरुओं के कारण शुरू हुए सांस्कृतिक पुनर्जागरण से हुआ था।

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अनुक्रम

प्रस्तावना —Pgs. 7

1946-47 में अमृतसर में शहीद संघ के स्वयंसेवक और अन्य जाने-माने नागरिक —Pgs. 15-21

1. डॉ. हेडगेवार : एक देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी —Pgs. 23

2. श्रीगुरुजी : मौन तपस्वी नेतृत्व   —Pgs. 41

3. 15 अगस्त, 1947 सभी भारतीयों के लिए स्वतंत्रतालेकर नहीं आया —Pgs. 58

4. राजनैतिक ईर्ष्या और संघ पर निशाना —Pgs. 90

5. निष्कर्ष —Pgs. 106

6. संदर्भ —Pgs. 114

The Author

Ratan Sharda

रतन शारदा बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं और संघ से संबद्ध अनेक प्रमुख संगठनों के साथ वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर चुके हैं।
सेंट जेवियर कॉलेज से आर्ट्स ग्रैजुएट तथा बंबई यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएट कर चुके रतन शारदा ने ओरलैंडो स्थित हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका से संघ को इसके संकल्पों से समझना, पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और पंजाब पर फोकस विषय पर डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी की उपाधि प्राप्त की है।
उनकी पुस्तक ‘आर.एस.एस. 360ए—डिमिस्टिफाइंग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ को आज संघ पर सर्वोत्तम पुस्तक माना जाता है। उन्होंने हिंदी में संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह की जीवनयात्रा और भारत से बाहर संघ के प्रेरक कार्यों पर ‘मेमोयर्स ऑफ ए ग्लोबल हिंदू’ पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी पर लिखी श्री रंगा हरि की कृति का अनुवाद किया है। रतन शारदा ने अनेक नए लेखकों का मार्गदर्शन किया है। वे अनेक न्यूज पोर्टल तथा ‘ऑर्गेनाइजर वीकली’ के स्वतंत्र स्तंभकार हैं तथा वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के रूप में अनेक अंग्रेजी तथा हिंदी चैनलों पर एक जाना-माना चेहरा हैं।

 

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