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जितना विराट हैं संघ का आज का स्वरूप, उतना ही रहस्यमय है उसका उद्भव और उसकी विकास-यात्रा। प्रसिद्धि-पराक्मुखता और गुमनामी के अँधेरे से बाहर निकलकर संघ आज प्रचार माध्यमों की जिज्ञासा और कौतूहल का केंद्र बन गया है; किंतु सार्वजनिक जीवन में पाश्चात्य कार्य-पद्धतियों के अभ्यस्त मस्तिष्कों के लिए यह समझना कठिन हो रहा है कि संघ का बीज कहाँ है और वह इतना विशाल वृक्ष कैसे बन गया। उसका प्रारंभिक लक्ष्य क्या था, उसने बीज से वृक्ष का रूप कैसे धारण किया, उसकी प्रेरणा का स्रोत कहाँ है और उसकी कार्य-पद्धति का वैशिष्ट्य क्या है? इस पुस्तक के संगृहीत लेखों में ऐसी ही जिज्ञासाओं का शमन करने का प्रयास किया गया है।
लिखित शब्द के अभाव में संघ के जन्मदाता डी. हेडगेवार और उनके हाथों गढ़े गए कार्यकर्ताओं की प्रारंभिक टोली के जीवन में ही संघ की विकास यात्रा की गाथा छिपी है। उनमें से कुछ व्यक्तित्वों में झाँकने का यहाँ प्रयास है। इन लेखों से यह भी ध्वनित होता है कि संघ की संगठन-यात्रा सीधी-सपाट राह पर नहीं चली है, बदलती हुई परिस्थितियों ने समय-समय पर उसके भीतर ऊहापोह और अंतर्द्वंद्व का झंझावात खड़ा किया है। वैचारिक अंतर्द्वंद्व के ऐसे क्षणों का वस्तुनिष्ठ ऐतिहासिक अध्ययन संघ के स्वयंसेवकों की निष्ठा को सुदृढ़ और विवेकी बनाने के लिए आवश्यक है। यह लेख-संग्रह इस दृष्टि से भी सहायक सिद्ध होगा।
जन्म 30 मार्च, 1926 को कस्बा कांठ (मुरादाबाद) उ.प्र. में। सन. 1947 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. पास करके सन् 1960 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् 1961 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान। सन् 1961-1964 तक शोधकार्य। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् 1985-1990 तक राष्ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के ‘ब्रिटिश जनगणना नीति (1871-1941) का दस्तावेजीकरण’ प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् 1942 के भारत छोड़ाा आंदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् 1948 में गाजीपुर जेल और आपातकाल में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् 1948 में ‘चेतना’ साप्ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् 1958 से ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् 1960 -63 में दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ लखनऊ में उप संपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘मंथन’ (अंग्रेजी और हिंदी का संपादन)।
विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्ठियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति। ‘संघ : बीज से वृक्ष’, ‘संघ : राजनीति और मीडिया’, ‘जातिविहीन समाज का सपना’, ‘अयोध्या का सच’ और ‘चिरंतन सोमनाथ’ पुस्तकों का लेखन।