₹400
इस ग्रंथ में संगृहीत लेखों का एक भाग संघ की संघटन-साधना की सांस्कृतिक प्रेरणाओं और रचनात्मक प्रवृतियों के उजागर करताहै। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संघ की कर्मशक्ति ने राष्ट्र-निर्माण के लिए नई संघटनात्मक रचनाएँ खड़ी की । श्रमिक, वनवासी, शिक्षा इत्यिदि क्षेत्रों के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी संघ ने प्रवेश किया। संघ की प्रेरणओं और आदर्शें को स्पष्ट करने के लिए राजनीति के क्षेत्र में संघ के तीन प्रमुख कार्यकताओं यथा-स्व दीनदयाल उपाध्याय नानाजी देशमुख और अठल बिहारी वाजपेयी के अंतर्मन की कुछ झलकियाँ इस संग्रह में प्रस्तुत की जा रही हैं।
संपूर्ण क्रांति और आपातकाल विराधी संघर्ष में संघ की रचनात्मक भुमिका के बावजूद संघ को सत्ता-राजनीति के प्रहारों से जूझना पड़ा, इसका समकालीन लेखा-जोखा भी यहाँ दिया गया है।
आगे चलकर मीडिया की पूरी दृष्टि अयोध्या आंदोलन और भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक उत्कर्ष पर केंद्रित हो गई । मीडिया स्वयं ही संघ-विराधी राजनीतिक अभियान का हिस्सा बन गया। क्या सचमुच मीडिया में संघ के बारे में इतना अज्ञान था? क्या वह संघ की अभिनव कार्य-प्रणाली को समझने में पूरी तरह असमर्थ था? इस संग्रह के कई लेख मीडिया के संघ के प्रति पूर्वग्रह, अज्ञान और विद्वेष भाव की तथ्यात्मक मीमांसा प्रस्तुत करते हैं।
‘संघ, राजनीति और मीडिया’ में संगृहीत लेखों को स्वाधीन भारत के घटना प्रवाह पर एक रनिंग कमेंट्री कहा जा सकता है।
—इस पुस्तक से
जन्म 30 मार्च, 1926 को कस्बा कांठ (मुरादाबाद) उ.प्र. में। सन. 1947 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. पास करके सन् 1960 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् 1961 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान। सन् 1961-1964 तक शोधकार्य। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् 1985-1990 तक राष्ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के ‘ब्रिटिश जनगणना नीति (1871-1941) का दस्तावेजीकरण’ प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् 1942 के भारत छोड़ाा आंदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् 1948 में गाजीपुर जेल और आपातकाल में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् 1948 में ‘चेतना’ साप्ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् 1958 से ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् 1960 -63 में दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ लखनऊ में उप संपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘मंथन’ (अंग्रेजी और हिंदी का संपादन)।
विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्ठियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति। ‘संघ : बीज से वृक्ष’, ‘संघ : राजनीति और मीडिया’, ‘जातिविहीन समाज का सपना’, ‘अयोध्या का सच’ और ‘चिरंतन सोमनाथ’ पुस्तकों का लेखन।