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म्याँमार में लोकतंत्र बहाली के लिए अथक संघर्ष करनेवाली आंग सान सू की म्याँमार में ही नहीं बल्कि विश्व भर में लोकप्रिय व चर्चित हैं। वर्ष 1991 में जेल में रहते हुए ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ समेत विश्व के लगभग सभी प्रमुख पुरस्कार प्राप्त कर चुकी सू की ने बचपन से लेकर 66 वर्ष की उम्र प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए गुजारी है। आज उन्होंने म्याँमार को इस स्थिति में ला दिया है कि सैनिक शासक लोकतंत्र बहाली के उपाय धीरे-धीरे अपनाने को विवश है।
म्याँमार के राष्ट्रपिता आंग सान का नाम लोग आज सू की के माध्यम से जानते हैं; लेकिन सू की ने सही मायने में राष्ट्रपुत्री बनकर गौरव प्राप्त किया है।
सू की के पिता देश को आजाद कराने और आजादी मिलने के बाद हुए आंतरिक संघर्ष से जूझे, जिनमें उन्हें अपनी जान तक गँवानी पड़ी। लेकिन सू की ने घृणा का जवाब प्रेम से और गोली का जवाब बोली से देकर सैनिक शासकों को इस स्थिति में ला दिया कि वे इस अद्भुत जीवटवाली आदर्श महिला के जज्बे के आगे झुकने को विवश हो गए।
सन् 1980 के दशक से सू की ने लोकतंत्र बहाली हेतु किए जा रहे संघर्ष की कमान थाम रखी है। आज दुनिया भर के देशों के लिए वे शांतिपूर्ण संघर्ष और लोकतंत्र समर्थकों की प्रेरणास्रोत बन गई हैं।
जन्म : 7 अप्रैल, 1959 को बिहार के दरभंगा जिले में।
शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान)।
कृतित्व : 1980 में लेखन और पत्रकारिता की शुरुआत। आजादी की लड़ाई लड़ रहे फिलिस्तीनी छापामारों की कविताओं तथा बेंजामिन मोलोइस की कविताओं का अनुवाद।
सन् 1984 में ‘नवभारत टाइम्स’ (लखनऊ) और 1985 में बंबई में नियुक्ति। फिर 18 साल तक पी.टी.आई. भाषा (दिल्ली) में कार्यरत।
संप्रति : स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद विभिन्न अखबारों में नियमित राजनीतिक टिप्पणियाँ।
इ-मेल : khanshashidhar@yahoo.com