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आप मेरी इस बात पर पूरा विश्वास कीजिए कि हनुमान प्रसादजी ‘सूक्ष्म शरीर’ बिल्कुल श्रीप्रियाजी (राधाजी) का स्वरूप हो गया है। बाहर जो दिखाई देता है, वह पाँच भौतिक ढाँचा ही है। भीतर सबकुछ भगवान् के अधिकार में आ गया है। परिणामस्वरूप भाईजी का शरीर एवं कर्मेंद्रियाँ प्रभु सेवा की निमित्त बनकर रह गई हैं।
भाईजी के शरीर में रक्त नहीं बहता है, प्रेम ही प्रेम बहता है। भाई जी क्षणभर के लिए भी बाह्य जगत् में नहीं रहते हैं, उन्हें राधाजी का नित्य संग प्राप्त है। भाईजी की संपूर्ण इंद्रियाँ मात्र अपने प्राणप्रिय श्रीकृष्ण का ही विषय करती हैं। उनकी आँखें अहर्निश अपने प्रभु को देखती हैं, उनके कर्ण ब्रह्ममयी3 वेणु की ध्वनि ही सुनते हैं। उन्हें नित्य-निरंतर रोम-रोम में प्रभु का स्पर्श अनुभव होता है। भगवान् ने अनेकशः मुझे यह दिव्य संदेश दिया है कि पोद्दार प्रभु मेरे (प्रभु) के साक्षात् स्वरूप हैं। उनमें मेरे समस्त भगवदीय गुणों का प्राकट्य है, परंतु ये अपने इन गुणों का अभाव देखते हैं। यथासंभव अपने दिव्य गुणों को छिपाए रहते हैं।
‘‘भाईजी की भगवती स्थिति कैसे हो जाती है?’’ एक-एक करके सभी इंद्रियाँ कार्य बंद कर देती हैं अर्थात् आँखें खुली हैं, परंतु देख नहीं रही हैं। मुँह खुला हुआ है, परंतु आवाज नहीं आ रही है; कान सुन नहीं रहे हैं एवं स्पर्श की अनुभूति नहीं हो रही है। इंद्रियों के निष्क्रिय होते ही मन कार्य करना बंद कर देता है। मन के निष्क्रिय होने पर बुद्धि भी काम करना बंद कर देती है। ऐसी स्थिति में वृत्तियाँ ‘इधर’ से हटकर ‘उधर’ लग जाती हैं। यह ‘उधर’ क्या है, यह समझ नहीं सकते हैं। जब इंद्रियाँ, मन, बुद्धि एवं अहं की सत्ता समाप्त हो जाती है तो ‘भगवती स्थिति’ कहलाती है। यह जाग्रत्-समाधि से भी आगे की स्थिति होती है।
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अनुक्रम
भूमिका — 7
मेरी बात — 9
आभार — 13
1. प्रवेश — 17
2. निष्कासन — 66
3. संघर्ष — 92
4. सेठजी (श्री जयदयाल गोयंदका) — 123
5. सबके भाईजी — 132
6. गीता-प्रेस, कल्याण प्रादुर्भाव — 149
7. गंभीरचंद दुजारी — 157
8. कल्याणमस्तु — 164
9. चिम्मनलाल गोस्वामी का प्रवेश — 168
10. कल्याण परिवार का पल्लवन — 175
11. कृष्ण चंद्र अग्रवाल का आगमन — 181
12. शांतनु बिहारी द्विवेदी का आगमन — 184
13. रामचरित मानस — 192
14. प्रभु की गोद में — 201
15. दर्शन — 209
16. प्रभु के सहचर — 216
17. बाबा का प्रवेश — 224
18. सचल वृंदावन — 232
19. संसारी या संन्यासी — 242
20. योगक्षेम वहन — 249
21. रामकृष्ण डालमिया — 255
22. कर्मक्षेत्रे — 260
23. नोआखाली की पीड़ा — 267
24. यश-अपयश विधि हाथ — 271
25. विश्व हिंदू परिषद — 273
26. गो रक्षा आंदोलन — 275
27. कृष्ण जन्म-भूमि — 278
28. वसीयत — 282
29. अनोखी सच्ची साधिका — 289
रेणु ‘राजवंशी’ गुप्ता
जन्म : 20 अक्तूबर, 1957 को कोटा (राजस्थान) में।
शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेजी), बी.ए. ऑनर्स (संस्कृत)।
कार्यक्षेत्र : व्यवसाय एवं साहित्य-लेखन। अनेक वर्षों तक कंप्यूटर साइंस का अध्यापन करने के पश्चात् अपने व्यवसाय में व्यस्त। जहाँ व्यवसाय उनके बाह्य जीवन को चलाए रखता है वहीं साहित्य, लेखन और स्वाध्याय आंतरिक जीवन को गतिशील रखता है। भटकन, उद्विग्नता, व्याकुलता और जीवन-मूल्यों की खोज को वह अपनी शक्ति मानती हैं।
कृतियाँ : ‘प्रवासी स्वर’ (काव्य-संग्रह); ‘कौन कितना निकट’, ‘जीवन लीला’ (कहानी-संग्रह)।
पता : 6070 EAGLET DR. WEST CHESTER, OH 45069 (513) 860-1151
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