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राम : सुनो लक्ष्मण! आर्य नारी तारा और मंदोदरी से भिन्न शीलवाली होती है, इसे प्रमाणित करने के लिए सीता को अग्नि-परीक्षा देनी ही होगी। लंका भोगवादी, यांत्रिक और आसुरी सभ्यता का केन्द्र रही है। स्वच्छंद-उन्मुक्त विलास ही इस सभ्यता में नारी के जीवन का उपयोग है। ऐसे परिवेश में नारी के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव नहीं।...
...समाज की मर्यादा व गरिमा का मूलाधार है नारी का पवित्र शील; वही समाज की सुव्यवस्था और सुप्रगति का अमोघ साधन है। इसीलिए नारी के सात्त्विक शील का, बहुमुखी पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों के रूप में, विकास हमारी संस्कृति में अभीष्ट रहा है।
—इसी संकलन से
आधुनिक भारत के मनन-मन्दिर में हमारी प्राचीन संस्कृति के महान् आदर्शों और सनातन मानव-मूल्यों की प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं ये एकांकी।
भारतीय संस्कृति के गौरव की इन नाटकीय झलकियों में साक्षात्कार है इस सत्य का कि हमारी सांस्कृतिक महानता का आधार है—सादा जीवन उच्च विचार, साथ ही त्याग, सेवा व सत्कर्मों की प्रधानता।
पुराण-पुरुषों तथा अवतारी महापुरुषों के जीवन की प्रेरक झलकियों में प्रस्तुत है हमारे सनातन जीवन-मूल्यों का पुनरावलोकन—
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।