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जापान में भी ईश्वर की पूजा-अर्चना, सेवा, देवों का आह्वान करने की रीतियाँ भारतीय जीवन से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं। भारत की तरह जापान में भी मकान बनाने से पहले भूमि-पूजन करते हैं। परिवार के मंगल के लिए पितरों से आशीर्वाद लेते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का दर्शन वहाँ भी होता है।
जापान की पौराणिक कहानियों में पत्थर में परिवर्तित हुई लड़की अपने श्रीरामचरितमानस की अहल्या जैसी ही लगती है और जापान की सूर्य उपासना की पद्धति भारत के सूर्य नमस्कार के जैसी ही है। जिस प्रकार हिंदू कोई धर्म नहीं है, एक जीवन पद्धति है, उसी प्रकार शिंतो भी प्रकृति और मनुष्य के साहचर्य की जीवन पद्धति है, जिसका किसी दर्शन, धर्म, ग्रंथ अथवा उपदेश से साम्य नहीं है, बस वह रहन-सहन का एक तरीका भर है।
जापान में भी दीपावली की तरह जगमगाहट है; होली की तरह रंगों की फुहार है; पतंगों के उत्सव में भिन्न-भिन्न प्रकार के पतंगों से रँगा हुआ पूरा आसमान है; शादी-विवाह के मौकों पर संगीत से सजी हुई महफिलें हैं तो साकुरा के बागों तले फूलों की अल्हड़ बरसात है; कठपुतलियों के नृत्य हैं। काबुकी के रंग-मंच में अभिनय के रंगों में रँगी हुई कोमल भावनाएँ हैं और भारत से मिलता-जुलता हर जगह बहुत कुछ है।
यह पुस्तक इन्हीं अनुभवों पर आधारित एक प्रतिबिंब है, जिसमें जापान के अनेक रंगों को समेटने का प्रयास किया गया है।
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अनुक्रम
प्राक्कथन —Pgs. 5
बदलता हुआ जापान —Pgs. 9
अपनी बात —Pgs. 17
1. सूर्योदय के देश ‘जापान’ में —Pgs. 23
2. चमत्कारिक ऊर्जा एवं प्रगति के बढ़ते चरण —Pgs. 28
3. पहले देश फिर मैं —Pgs. 33
4. शिक्षा, धार्मिकता एवं जीवन मूल्य —Pgs. 40
5. श्रम की लक्ष्मी ने सँवारा भाग्य —Pgs. 46
6. किरीगामी-ओरीगामी —Pgs. 52
7. जापान के मंदिर : आस्था के केंद्र —Pgs. 61
8. गीशा : जापानी संस्कृति का अभिन्न अंग —Pgs. 76
9. चेरी फूले मधुमास —Pgs. 84
10. सूर्योदय के देश में हर दिन त्योहार —Pgs. 94
11. काबुकी —Pgs. 109
12. परंपरा से परंपरा तक —Pgs. 114
13. हिरोशिमा व नागासाकी : एक भयंकर त्रासदी —Pgs. 123
14. भूकंपों का देश —Pgs. 128
15. जिंदगी जश्न है यहाँ —Pgs. 132
शीला झुनझुनवाला
सन् 1927 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्म; डी.ए.वी. कॉलेज से एम.ए. (अर्थशास्त्र) एवं एल.टी. की उपाधि। हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से साहित्य-रत्न एवं प्रयाग महिला विद्यापीठ से विदुषी ऑनर्स। कानपुर के ही म्युनिसिपल गर्ल्स कॉलेज में एक वर्ष अर्थशास्त्र का अध्यापन।
1960 से 1965 तक ‘धर्मयुग’ साप्ताहिक के महिला पृष्ठों का संपादन। दिल्ली में सेंट्रल न्यूज एजेंसी द्वारा प्रकाशित महिला पत्रिका ‘अंगजा’ की संपादिका रहीं। ‘कादंबिनी’ में संयुक्त संपादक रहने के बाद ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में संयुक्त संपादक, फिर ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ की प्रधान संपादक रहीं। अंग्रेजी में प्रकाशित ‘मनी मैटर्स’ पत्रिका की कार्यकारी संपादक। दृश्य-जगत् में अनेक नाटक एवं फिल्मों में पटकथा-लेखन।
राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद् से अनेक कृतियाँ एवं बाल साहित्य की अनेक पुस्तकें, कई प्रसिद्ध उपन्यास एवं विभिन्न विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित।
भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’; बाल साहित्य कृति सम्मान; साहित्यकार सम्मान; पत्रकारिता गौरव सम्मान; गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार; पंडित अंबिका प्रसाद बाजपेयी सम्मान आदि से अलंकृत।