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"यह पुस्तक संताली के प्रख्यात लेखक, कवि, समालोचक और भाषाविद् बाबूलाल मुर्मू “आदिवासी ' के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता से प्रस्तुत करती है ।
15 अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक में उनके साहित्यिक जीवन, गद्य-पद्य साहित्य के विविध आयामों, उनके साहित्य को विशेषता, उन्हें मिले सम्मान एवं पुरस्कार तथा उनको प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों की गहन जानकारी समायोजित है।
बाबूलाल मुर्मू ""आदिवासी ' का संताली भाषा-साहित्य को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने संताली लोकगीतों का संग्रह, संताल में साहित्य सृजन तथा भाषा एवं संस्कृति आदि विषयों पर भरपूर लेखन किया। वे संताली पत्रिका 'होड़ सोम्बाद' के संपादक रहे। 1966 से 2004 तक उनकी 23 पुस्तकें प्रकाशित हुई, जबकि 13 पुस्तकें अप्रकाशित हैं। विश्वभारती, शांति निकेतन सहित झारखंड और पश्चिम बंगाल के कई विश्वविद्यालयों के स्नातक एवं स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ सम्मिलित हैं, किंतु उनके जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर समग्रता से जानकारी देनेवाली पुस्तक का अभाव था। डॉ. आर. के. नीरद की यह पुस्तक इस अभाव को दूर करती है। बाबूलाल मुर्मू ' आदिवासी ' पर अब तक जिलने कार्य हुए हैं, उन सभी को इस पुस्तक में समायोजित करने का प्रयत्न किया गया है। यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्व है कि इसमें संताली संस्कृति, कला, मिथकों और परंपराओं का दिद्वत्तापूर्ण विश्लेषण- विवेचन किया गया है।
डॉ. आर. के. नीरद वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, जनजातीय कला एवं संस्कृति के गहरे जानकार और आर.टी.आई. एक्टिविस्ट हैं। 1994 से ‘प्रभात खबर’ से संबद्ध हैं और हरिवंशजी के सान्निध्य-निर्देशन में दो दशक से ज्यादा समय तक पत्रकारिता की। इसी अवधि में आकाशवाणी, दूरदर्शन, साधना न्यूज, सहारा और न्यूज-11 जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी काम किया। साहित्यिक पत्रिका ‘नई प्रतिभा’, ‘नए स्वर’ एवं ‘ऋचा’ तथा पाक्षिक समाचार-पत्र ‘झारखंड संदेश’ का संपादन किया। आदिवासी चित्रकला अकादमी, दुमका एवं दुमका प्रेस क्लब के अध्यक्ष और भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी, दुमका के मानद सचिव रहे। संताल जनजाति की लुप्तप्राय रैखिक थाती ‘जादोपटिया पेंटिंग’ और फिर ‘बैद्यनाथ पेंटिंग’ इनकी दो बड़ी खोज हैं। आर.टी.आई. पर लघु-शोध के लिए झारखंड सरकार से मीडिया फेलोशिप, ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया से फेलोशिप तथा कई संगठनों से अवार्ड। संताल जनजातीय संस्कृति पर अध्ययन के लिए सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, झारखंड सरकार से फेलोशिप।
हरिवंशजी की पत्रकारिता पर शोध-कार्य के लिए इन्हें 2017 में झारखंड के एस.के.एम. विश्वविद्यालय, दुमका ने डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। हरिवंशजी पर यह प्रथम पुस्तक है।
संपर्क : 15, कल्याण-राज निवास, कमलाबाग कॉलोनी, दुधानी, दुमका-814101 (झारखंड)
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