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इस पुस्तक को पढ़कर ग्रामीण और देहाती इलाकों में रहने वाले छात्रों का आत्मविश्वास बढ़े; उनके मन में बसी हीनता कम हो और उनकी जिजीविषा और दृढशक्ति विस्तृत हो, यही लेखक का अभीष्ट है।
असंख्य संकटों और प्रतिकूलताओं के तूफान में किसी दीपस्तंभ के समान दृढ रहते हुए अपनी संतान के जीवन को दिशा और प्रकाश देनेवाली राजेंद्र की अशिक्षित परंतु सुसंस्कृत माँ और मौसी सबसे अधिक प्रशंसा की पात्र हैं।
सुसंस्कृतता, गुणवत्ता, सफलता, इनपर केवल बड़े शहरों में और अंग्रेजी स्कूलों में पढ़नेवाले संपन्न और धनवान छात्रों का अधिकार नहीं है, अपितु जिनके मन में इच्छाशक्ति, मेहनत, लगन, धैर्य, आत्मविश्वास और प्रकृति के प्रति अपनी अपार श्रद्धा की ज्योत प्रज्वलित होती है, वहाँ सभी स्वप्न साकार होते हैं।
आप कहाँ जन्म लेते हो, आपके माता-पिता अमीर हैं या गरीब, आप शहर में रहते हो या गाँव में, अंग्रेजी, निम्न अंग्रेजी, सी.बी.एस.ई. माध्यम में पढ़ते हो या अपनी मातृभाषा में? इन बातों का आपकी सफलता एवं असफलता से कोई संबंध नहीं है। आपके विचार, स्वभाव एवं जी तोड़कर मेहनत करने का जज्बा, इन्हीं पर आपका भविष्य निर्भर होता है।
युवा IAS अधिकारी राजेंद्र भारुड का संघर्षमय, किंतु सफल जीवन-यात्रा ‘सपनों की उड़ान’ भरने का जीता-जागता प्रमाण है।
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अनुक्रम
मनोगत—5
1. वह रोमांचक दिन—11
2. मेरे पैदा होने से पहले की दास्ताँ—20
3. मेरा जन्म और माँ-मौसी की जद्दोजेहद—30
4. ...और मैं अपाहिज होने से बाल-बाल बच गया—39
5. स्कूल : एक आलोक-पथ—48
6. मेरा गाँव, मेरी बस्ती—59
7. मेरा बेटा भी एक दिन डॉटर-कलेटर बनेगा—67
8. दीपस्तंभ से मेरे गुरुजन—76
9. मेरी जिंदगी का नवोदय—83
10. सतपुड़ा हाउस की स्मृतियाँ—93
11. राजस्थानी नवोदय विद्यालय—101
12. ‘सीईटी’में करिश्माई सफलता—111
13. आरक्षण का यथार्थ और मानसिकता—123
14. ‘एम.बी.बी.एस.’ @ जी.एस. मेडिकल कॉलेज—131
15. जुनून सैर-सपाटे का—138
16. सुहाने सपने की सुनहरी चमक—148
17. यू.पी.एस.सी. एक चुनौती और उसका मुकाबला—159
18. ...और मैं आई.ए.एस. का हकदार बना—178
जन्म : 7 जनवरी, 1988 को महाराष्ट्र के खान्देश प्रांत के आदिवासी बहुल धुलिया जिले के सोमेडे में हुआ।
शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा गाँव के जिला परिषद् स्कूल में; छठी में नंदूरबार जिले के अक्कलकुवा के नवोदय में दाखिला; बारहवीं के बाद पी.एम.टी. में 200 में से 194 अंक लेकर उन्हें एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई के लिए मुंबई के प्रतिष्ठित सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज और के.ई.एम. हॉस्पिटल में दाखिला मिला। 2011 में उन्हें बेस्ट स्टूडेंट का पुरस्कार प्राप्त हुआ। एम.बी.बी.एस. की डिग्री के साथ-साथ अपने पहले ही प्रयास में यू.पी.एस.सी. परीक्षा उत्तीर्ण होते हुए आर.आर.एस. का पद भी प्राप्त किया। अगले साल, अपने प्रशिक्षण के दौरान, अपने दूसरे प्रयास में उन्होंने आई.ए.एस. का पद प्राप्त कर लिया और महाराष्ट्र कॅडर में पदभार सँभाल लिया। उनकी प्रथम नियुक्ति जिला नांदेड़ के किनवट में सहायक जिलाधिकारी एवं प्रकल्प अधिकारी के रूप में हुई। वर्तमान में वह सोलापुर में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर कार्यरत है।
कृतित्व : समाज-कल्याण की विभिन्न योजनाओं से निर्बल-निर्धन को समर्थ बनाने का लोकधर्म निभाया। साथ ही अंध, अपंग, अनाथ, आदिवासी एवं ग्रामीण युवाओं के सक्षमीकरण के लिए कार्यरत दीपस्तंभ फाउंडेशन, जलगाँव के सम्मानीय सलाहकार एवं मार्गदर्शक भी हैं।