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‘भारत में श्वेत क्रांति के जनक’ के रूप में सुविख्यात डॉ. वर्गीज कुरियन ने अपनी दूरदृष्टि और अथक प्रयासों से भारत को दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश के रूप में स्थापित किया। भारतीय किसानों को समृद्ध व सशक्त बनाने का सपना मन में लिये डॉ. कुरियन ने अपना सारा जीवन और सारी ऊर्जा इस सपने को साकार करने में लगा दी। उन्होंने पूरे भारत में ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ एवं उसके उत्पादों के विपणन के लिए ‘गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ’ की स्थापना की। उन्होंने सहकारी समितियों के महत्त्व को पहचाना और इनका सफल संयोजन किया। आज उनके द्वारा स्थापित ‘अमूल’ को एशिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था के रूप में जाना जाता है।
डॉ. वर्गीज कुरियन ने अपने जीवन की कथा को इन संस्मरणों में स्वाभाविक निष्पक्षता और बेबाकी से प्रस्तुत किया है। यह आत्मकथात्मक कृति जीवन के संघर्षों, विषम परिस्थितियों एवं कठिन अवसरों पर धैर्य, साहस और निर्भीकता के महत्त्व को रेखांकित करने के साथ ही प्रेरणा भी देती है। इसे पढ़कर डॉ. कुरियन के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं उनके जीवन की रोमांचकारी गाथा को पढ़ने, समझने और गुनने का अवसर मिलेगा।
कालीकट, केरल में जन्म। मद्रास विश्वविद्यालय से विज्ञान में तथा मिशिगन स्टेट विश्वविद्यालय (अमेरिका) से इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त। डॉ. कुरियन ने आणंद (गुजरात) की सरकारी डेयरी में कार्य करते हुए अपने कैरियर की शुरुआत की। इसके बाद वह कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लि. में कार्य करने लगे। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने विश्व के सबसे बड़े डेयरी विकास कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ का आरंभ किया। डॉ. कुरियन ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, गुजरात के अध्यक्ष; गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन परिसंघ के अध्यक्ष और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी डेयरी परिसंघ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर चुके हैं।
उन्हें अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हैं, जिनमें ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’ (1963), ‘वाटलर शांति पुरस्कार’ (1986), ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ (1989), ‘पद्मश्री’ (1965), ‘पद्मभूषण’ (1966) और ‘पद्मविभूषण’ (1999) प्रमुख हैं।
संप्रति : इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति।