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यज्ञ शर्मा समकालीन हिंदी व्यंग्य साहित्य के उन सशक्त व्यंग्यकारों में से हैं, जो अपने समय की विसंगतियों को बखूबी पहचानते हैं और उनपर सार्थक प्रहार करते हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में नावक के तीर जैसे आकार में छोटे परंतु तीक्ष्ण प्रहार करनेवाले व्यंग्य लेखों की रचना करने में वे सिद्धहस्त हैं। उनकी रचना में से अनावश्यक वाक्य तो दूर की बात है, अनावश्यक शब्द भी रेखांकित करना कठिन है। उनकी व्यंग्य-भाषा अपनी सभी शक्तियों से लैस होकर कथ्य को सटीक अभिव्यक्ति प्रदान करती है। भाषा के इन प्रयोगों में वे शरद जोशी की परंपरा के व्यंग्यकार हैं। वे अपने आस-पास घटनेवाली सामाजिक, राजनीतिक आदि घटनाओं के प्रति निरंतर सजग रहते हैं और एक कुशल व्यंग्यकार की तरह उनपर रचनात्मक आक्रमण करते हैं।
सामाजिक सरोकारों से जुड़े ‘सरकार का घड़ा’ संग्रह के व्यंग्य जहाँ एक ओर पाठक को सामाजिक विसंगतियों के प्रति शिक्षित करते हैं, वहीं अपनी रोचकता में एक उपन्यास का सा आनंद भी देते हैं। इन रचनाओं में राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों में फँसे आम आदमी की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है, जो पाठक को संवेदनशील बनाती है। —प्रेम जनमेजय
(प्रमाण-पत्रों में—यज्ञ दत्त शर्मा। थोड़ा पंडिताऊ लगता था सो ‘दत्त’ लिखना छोड़ दिया।) जन्मतिथि : 1 जून, 1949 (जन्मस्थान - मथुरा)। शिक्षा : एम. एस-सी. (भूगर्भशास्त्र, मुंबई विश्वविद्यालय, 1964)। पिता : डॉ. गोपाल दत्त (उन्होंने शर्मा लिखना छोड़ दिया था)। माता : गायत्री देवी (माता-पिता के नाम इसलिए दिए, ताकि कल कोई मेरी जड़ें खोजना या खोदना चाहे तो मिल जाएँ)। पत्नी : डॉ. सुधा शर्मा (उन्होंने पी-एच.डी. की है यानी मुझसे ज्यादा पढ़ी हैं। मैंने अपने परिचय में अपनी पत्नी का नाम इसलिए शामिल किया है कि लेखक अकसर जीवन देनेवालों के नाम तो बता देते हैं, जीवन भर साथ देनेवाले का नाम बताने में संकोच कर जाते हैं)। भटकाव : 4 साल भूगर्भवैज्ञानिक की नौकरी, 17 साल टीवी स्ट्रिंगर, 2 साल अमर चित्र कथा के सहयोगी संपादक। 2 साल बच्चों की सचित्र विज्ञान पत्रिका ‘साइफन’ के हिंदी संपादक, 16 साल एक प्रमुख विज्ञापन एजेंसी में भारतीय भाषा विभाग प्रमुख तथा भाषा सलाहकार।