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कोई भी नशा बेहद खतरनाक है, क्योंकि यह जानलेवा होता है। नशाखोर व्यक्ति इसकी चपेट में आकर अपना स्वास्थ्य, नौकरी-व्यवसाय, घर-परिवार सबकुछ चौपट कर देता है।
कितने अचंभे की बात है कि नशाखोर अपनी मौत पैसों से खरीदते हैं। वे जान-बूझकर तिल-तिल मौत का शिकार होते रहते हैं। सिगरेट पीनेवालों को तो समझदार हरगिज नहीं कहा जा सकता। वे खुद तो सिगरेट-बीड़ी पीकर बरबाद होते हैं, साथ ही जहरीला धुआँ छोड़कर अपने आसपास रहनेवालों को भी बीमार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
इस पुस्तक का यही उद्देश्य है कि लोग बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू-गुटखे से तौबा कर लें तथा औरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। केवल पढ़कर ही न रह जाएँ कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि उस पर अमल भी करें। नशा करनेवाले यह न भूलें कि उनकी इन बुरी आदतों की लत उनके बच्चों को भी लग सकती है; इससे न केवल वे स्वयं नष्ट होंगे, बल्कि उनकी आनेवाली पीढ़ी भी इससे निजात नहीं पा सकेगी। इसलिए आज ही अपनी अदम्य इच्छाशक्ति जाग्रत् करके तय कर लें कि किसी भी प्रकार का नशा नहीं करेंगे और जीवन में खुशहाल होने के मार्ग पर वापस लौटेंगे।
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश दत्त शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य।
हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैं—मध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।