₹200
गायों के गलियारे से गुजर चुकने पर, सीढ़ियाँ चढ़ती हुई सवित्तरी उसके बिलकुल पास आ गई, तो मीता बोली, “कहो, कैसी हो? तुम्हारा नाम सवित्तरी है ना?”
“हाँ, बहूजी!...मगर आपके मकान-मालिक भट्टाचार्जी साहब हैं ना, जिनकी फटकिया सड़क की तरफ से पड़ती है—बहुत मजाकिया आदमी हैं। कहते हैं कि सवित्तरी का मतलब सूरज की किरन होता है। कहते हैं—‘हाम तुमको किरन कुमारी बोलेगा।’ सड़क पर जाती देखेंगे, तो जोर से आवाज लगाएँगे कि ‘ए किरन कुमारी, किधर जाता है रे!’ पास जाऊँगी, तो बिलकुल धीमे से कहेंगे—‘हमारे वास्ते एक ठो कोप चा बनाने को सकती हो?’ चाय बनाके दूँगी, तो बोलेंगे—‘तुम बहोत रसगुल्ला लड़की हो, कभी हम तुमको ‘हौप्प’ करके खा जाएगा।’ आपने बंगाली मोशाय को देखा या नहीं?”
—इसी उपन्यास से
‘सवित्तरी’ एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें एक निर्धन और समाज द्वारा उपेक्षित परिवार में जनमी युवती सवित्तरी की मर्मस्पर्शी कहानी है। वह किसी को अपने पास तक आने नहीं देती, फिर भी समाज के कर्णधारों द्वारा वह छली जाती है और उसका जीवन पतन की ओर उन्मुख हो जाता है।
वास्तव में ‘सवित्तरी’ हमारे समाज का वह घिनौना रूप हमारे सामने प्रस्तुत करनेवाला उपन्यास है, जिसकी कल्पना मात्र से हम सिहर उठते हैं, उद्वेलित हो जाते हैं।
जन्म : 14 अक्तूबर, 1931 को अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछीना गाँव में।
शिक्षा : हाई स्कूल तक।
शैलेश मटियानी का अभिव्यक्ति-क्षेत्र बहुत विशाल है। वे प्रबुद्ध हैं, अत: लोक चेतना के अप्रतिम शिल्पी हैं। श्रेष्ठ कथाकार के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की ही, निबंध और संस्मरण की विधा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कृतित्व : तीस कहानी-संग्रह इकतीस उपन्यास तथा नौ अपूर्ण उपन्यास, तीन संस्मरण पुस्तकें, निबंधात्मक एवं वैचारिक विष्ियों पर बारह पुस्तकें, लोककथा साहित्य पर दस पुस्तकें, बाल साहित्य की पंद्रह पुस्तकें। ‘विकल्प’ एवं ‘जनपक्ष’ पत्रिकाओं का संपादन।
पुरस्कार एवं सम्मान : प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत; ‘महाभोज’ कहानी पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘प्रेमचंद पुरस्कार’; सन् 1977 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत; 1983 में ‘फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ पुरस्कार’ (बिहार); उत्तर प्रदेश सरकार का ‘संस्थागत सम्मान’ ; 1994 में कुमायूँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी.लिट.’ की मानद उपाधि; 1999 में उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा ‘लोहिया सम्मान’; 2000 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’।
महाप्रयाण : 24 अप्रैल, 2001 को दिल्ली में।