₹300
सेतुबंध! सदियों पहले एक सेतु बना था। रामायण काल में लड़ाई थी राम-रावण के बीच देव एवं आसुरी शक्तियों के बीच। वास्तुकार नल-नील की प्रतिभा वानर सेना की उत्कृष्ट भक्ति और... गिलहरी...से...सुग्रीवराज हर किसीकी सामूहिक भक्ति एवं कर्म शक्ति! ज्ञान, भक्ति, कर्म की त्रिवेणी ने निर्माण किया वह सेतुबंध! आसुरी शक्ति पराजित हुई दैवी शक्ति विजयी हुई! वक्त बदलता है रूप बदलते हैं पात्र बदलते हैं लेकिन... दानव और मानव के बीच संघर्ष चलता ही रहता है यह संघर्ष अंतर्मन से लेकर चराचर सृष्टि तक व्याप्त है तभी तो... निर्माण करने पड़ते हैं ‘सेतु’ युग के अनुकूल सेतुबंध का निर्माण देश भर में आज भी चलता ही रहता है।
गुजरात में भी ऐसे सेतुबंध के प्रमुख वास्तुकार थे श्री वकील साहब उनकी कार्य शक्ति कर्तत्व शक्ति एवं अपार भक्ति की धुरा के इर्द-गिर्द निर्मित आकृति का यह आलेख यानी... सेतुबंध! जिन्होंने... सहस्र हृदयों को स्नेह के बंधन से बाँध दिया स्वयं सेतु बनकर चिरंतन सांस्कृतिक सरिता की अनुभूति कराने हेतु रचा था... व्यवहार जगत् का... सेतु... भव्य भूतकाल की धरोहर पर उज्ज्वल भविष्य के निर्माण हेतु वर्तमान में रचा था एक निष्ठ पुरुषार्थ का सेतु...! यह वकील साहब का चरित्र ग्रंथ नहीं है... और न ही है यह उनका गौरव गान... यह तो है उनकी सुदीर्घ तपस्या का पुरुषार्थ का शब्द देह...!
गुजरात के संघ कार्य में संघ परिवार में वकील साहब का स्थान अनोखा था। गुजरात के सार्वजनिक जीवन में उनका योगदान भी अप्रतिम था... ऐसी जीवन यात्रा को स्नेह सरिता को कर्मधारा को शब्द-देह देना सरल काम नहीं है इसके बावजूद भी वकील साहब के प्रति समर्पित अंतःकरण के उत्कृष्ट भाव शब्द रूप अभिव्यक्ति के लिए प्रेरणा देते रहते हैं उसी भाव विश्व की कोख से तो सृजन हुआ ‘सेतुबंध’ ‘सेतुबंध’ के लिए अनेकों ने साहित्य भेजा है। भेजे हैं संस्मरण पत्र एवं तसवीरें भी साथ-साथ सद् इच्छा, सद् भाव और सुझाव भी ‘सेतुबंध’ की रचना में उसका बहुत उपयोग हुआ हम सबके आभारी हैं हाँ... फिर भी मन में एक कसक है ही आई हुई सारी जानकारी का हम उपयोग कर नहीं पाए उसके पीछे भी कुछ कारण हैं कुछ मर्यादाएँ भी... ‘लक्ष्मण-रेखा थी’ ‘सेतुबंध’ के पीछे की भूमिका की मर्यादा थी... उसकी आकृतिबंध की और उससे भी अधिक मर्यादा थी हमारी प्रतिभा शक्ति की।
बावजूद... हमें लगता है इस कृति के संबंध में पाठकों के मन में जो धारणाएँ होंगी जो अपेक्षाएँ होंगी उसकी कुछ मात्रा में पूर्ति होने का अहसास अवश्य होगा। नम्र अपेक्षा यही है कि समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में जो लोग समर्पण भाव से युगानुरूप ‘सेतुबंध’ का निर्माण कर रहे हैं उन सबके लिए यह शब्द रूप ‘सेतुबंध’ कुछ-न-कुछ काम आए।
गुजरात के मेहसाना जिले के वडनगर में जनमे श्री मोदी राजनीतिशास्त्र में एम.ए. हैं। स्वयंसेवक के रूप में संघ संस्कार एवं संगठन वृत्ति के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए1999 में वे भाजपा के अखिल भारतीय महामंत्री बने। सोमनाथ-अयोध्या रथयात्रा हो या कन्याकुमारी से कश्मीर की एकता यात्रा, उनकी संगठन शक्ति के उच्च कोटि के उदाहरण हैं। गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन हो या आपातकाल के विरुद्ध भूमिगत संघर्ष, प्रश्न सामाजिक न्याय का हो या किसानों के अधिकार का, उनका संघर्षशील व्यक्तित्व सदैव आगे रहा है।
ज्ञान-विज्ञान के नए-नए विषयों को जानना उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। उन्होंने जीवन-विकास में परिभ्रमण को महत्त्वपूर्ण मानते हुए विश्व के अनेक देशों का भ्रमण कर बहुत कुछ ज्ञानार्जन किया है।
अक्तूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पद सँभालने के बाद उन्होंने प्रांत के चहुँमुखी विकास हेतु अनेक योजनाएँ प्रारंभ कीं—समरस ग्राम योजना, विद्या भारती, कन्या केलवानी योजना, आदि। स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत ‘चरैवेति-चरैवेति’ पर अमल करते हुए निरंतर विकास कार्यों में जुटे श्री मोदी को बीबीसी तथा बिजनेस स्टैंडर्ड ने ‘गुजरात का इक्कीसवीं सदी का पुरुष’ बताया है।
आज भारत में ‘सुशासन’ की गहन चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री के रूप में कम समय में ही श्रेष्ठ प्रशासक और सुशासक के रूप में भारत की प्रथम पंक्ति के नेताओं में उनका नाम लिया जाता है।