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कविता किसी कवि या रचनाकार को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई होती, वह अपने समय और साहित्य दोनों की कथावस्तु को अपने में समाहित करते हुए प्रतिरोध की संस्कृति को नया आयाम प्रदान करती है। 21वीं सदी में कविता का वह दौर, जहाँ यथार्थ के धरातल से एक कविता उठती है, जिसे घेरते हुए सारे तथ्य, विषय, प्रसंग, दृश्य, छवियाँ, शोरगुल, अर्थपूर्ण और अर्थहीन, सत्य और अर्ध-सत्य, झूठी नंगी सच्चाइयाँ और उनसे ज्यादा नंगे उनके टिप्पणीकार, समाजवाद बनाम फासिज्म, सवर्ण बनाम दलित, मरी हुई आत्माएँ भटकती-फिरती इतिहास के पन्नों में अपने आपको सँजोती हैं। इस संग्रह की कविताएँ एक विडंबना और विस्मय की कविताएँ हैं, ये एक घिरी हुई असुरक्षित जमीन के बारे में कुछ कहना चाहती हैं।
कवि नागेंद्र प्रसाद सिंह (आई.ए. एस.) ने हिंदी कविता के वर्तमान परिदृश्य को उकेरते हुए आम जनमानस के प्रतिरूप को अपने काव्यानुभवों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। दरअसल ऐसी कोई कविता हमारे उस संकट के मूल में जाती है, जब इस कदर अमानवीय स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जहाँ मानवता शांत, व्यवस्थित और द्वंद्वरहित हो जाती है और यहीं पर यह काव्य-संग्रह उसके अर्थ को दुबारा प्रस्तुत करता है।
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अनुक्रम
भूमिका —Pgs. 7
लेखकीय —Pgs. 21
1. दृष्टिदोष —Pgs. 25
2. श्रमिक हूँ मैं! —Pgs. 30
3. मैं क्या करूँ? —Pgs. 34
4. दो सौ रुपए का चेक —Pgs. 38
5. तुम्हें स्वीकृति है —Pgs. 42
6. स्वप्न! शहादत का... 46
7. देश —Pgs. 50
8. टूटपूँजिया बुद्धिजीवी —Pgs. 53
9. एहसास अपने होने का —Pgs. 58
10. नास्तिक हूँ मैं! —Pgs. 66
11. उड़ान —Pgs. 71
12. वास्तविक प्रणयिनी —Pgs. 75
13. परिवर्तन लाना होगा —Pgs. 81
14. तलाश! मेरे अभीष्ट की... 87
15. मैं जानता हूँ —Pgs. 94
16. जननायक हूँ मैं! —Pgs. 97
17. अनकहे शब्द —Pgs. 102
18. दासत्व का बादशाह —Pgs. 108
19. आई होली रे!... 113
20. छद्म संन्यासी —Pgs. 116
21. शातिर —Pgs. 123
22. मन्नतें —Pgs. 127
23. कामना! तुम्हारे अमरत्व की... 130
24. वो अनकहा-सा —Pgs. 135
25. यूँ ही कुछ चलते-चलते —Pgs. 140
एन.पी. सिंह
जन्म : 23 जनवरी, 1961 उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के बरजी गाँव में।
शिक्षा : भौतिकी (स्नातकोत्तर) इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
कार्य : वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्यरत। इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों (मुख्यतः नक्सल प्रभावित क्षेत्र) के नवयुवकों को शिक्षा एवं रोजगार से जोड़कर उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने का प्रयास कई वर्षों से कर रहे हैं। विमुक्त जातियों, जैसे बावरिया आदि के कवियों को प्रोत्साहित करने एवं युवा पीढ़ी को अपराध की ओर उन्मुख न होने देने के लिए अनेक प्रयास कर रहे हैं। पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में भी निरंतर उद्यमशील रहते हैं।