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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी शिवराम हरि राजगुरु का जन्म सन् 1908 में पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही पिता का निधन हो जाने के कारण बहुत छोटी उम्र में ही वे विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने वाराणसी आ गए थे। वहीं उन्होंने हिंदू धर्म-ग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही, ‘लघुसिद्धांत कौमुदी’ जैसा क्लिष्ट ग्रंथ बहुत कम समय में कंठस्थ कर लिया था। राजगुरु को कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के वे बड़े प्रशंसक थे।
वाराणसी में राजगुरु का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ। वे चंद्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए। आजाद के संगठन के अंदर उन्हें ‘रघुनाथ’ के छद्म नाम से जाना जाता था। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। सांडर्स का वध करने में उन्होंने भगतसिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भाँति उन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की।
23 मार्च, 1939 को भारत माँ के वीर सपूत राजगुरु भगतसिंह व सुखदेव के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में फाँसी पर झूलकर मातृभूमि पर बलिदान हो गए।
जन्म : 8 दिसंबर, 1978 को चंडीगढ़ (पंजाब) में।
शिक्षा : परास्नातक (हिंदी), डिप्लोमा इन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग।
पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयक रचनाएँ प्रकाशित। शिक्षा, धर्म, संगीत, जीवन-चरित्र, खेल तथा कुकिंग जैसे विभिन्न विषयों का गहन अध्ययन कर अपनी लेखनी के रंग बिखेर रहे हैं। अब तक 40 से भी अधिक पुस्तकें लिखित व संपादित।
संप्रति : प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक संस्था में कार्यरत; इसके अतिरिक्त स्वतंत्र लेखन व संपादन।