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अपने देशवासियों पर घोर अत्याचार होता देखकर युवा ऊधम सिंह का खून खौल उठा। उसने तय किया कि भारतीयों के मान-सम्मान को कुचलने के इरादे से किए गए जलियावाले हत्याकांड का वह बदला अवश्य लेगा।
ऊधम सिंह के अंदर प्रतिशोध और देशभक्ति की ज्वाला इतनी तीव्र हो गई थी कि जब कुछ सालों बाद उसे पता चला कि गोलीकांड करवानेवाला ब्रिगेडियर जनरल ई. एच. डायर इंग्लैंड जाकर बेहद बीमार हो गया और फिर कुछ साल तक बीमारी झेलते-झेलते उसकी मौत हो गई तो वह काफी निराश हुआ।
पंजाब से निकलकर इंग्लैंड जाने और बड़े अंग्रेज अफसरों तक पहुँचने का सफर ऊधम सिंह के लिए आसान नहीं रहा। हालाँकि कठिनाइयों का सामना करने की आदत तो उसे बचपन से ही पड़ गई थी। ऊधम सिंह के बचपन से लेकर क्रांतिकारी बनने और जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने तथा मातृभूमि के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने तक की कहानी इस पुस्तक में दी गई है।
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अनुक्रम
प्रस्तावना —Pgs. 5
1. बचपन —Pgs. 15
2. तत्कालीन परिस्थितियाँ और जलियाँवाला बाग —Pgs. 28
3. संघर्ष का दौर —Pgs. 38
4. जेल में भगत सिंह का साथ —Pgs. 53
5. उदे सिंह से क्रांतिकारी ऊधम सिंह तक —Pgs. 68
6. ऊधम सिंह की विदेश यात्रा —Pgs. 79
7. डायर का वध —Pgs. 87
8. प्रतिक्रियाएँ —Pgs. 97
9. ब्रिक्सटन जेल में ऊधम सिंह —Pgs. 104
10. कैक्सटन केस की जाँच —Pgs. 113
11. गुप्त मुकदमा —Pgs. 122
12. शहादत —Pgs. 130
13. विसर्जन-10 —Pgs. 138
डॉ. पूनम यादव ने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से हिंदी साहित्य में एम.ए. और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। संप्रति वे टीकाराम स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मोंठ, जिला झाँसी, उत्तर प्रदेश में प्राध्यापक हैं। देश के महान् स्वाधीनता सेनानियों के कार्यों को देश के सामने रोचक और प्रेरक तरीके से प्रस्तुत करने में इनकी गहरी रुचि है।