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सनातन संस्कृति में धर्म जीवन से अलग नहीं है। जीवन का मार्ग धर्म के पथ से ही होकर जाता है। अतएव जीवन और धर्म दो विभिन्न अस्तत्व नहीं हैं। धर्म के विविध वर्णों को एक सतरंगी इन्द्रधनुष की तरह अपने जीवन-आकाश में स्थापित करना ही प्रत्येक मानव का लक्ष्य होना चाहिए। इसी प्रेरणा को विभिन्न लेखों के माध्यम से पाठकों तक प्रेषित करने का एक प्रयास है ‘शैवालिनी’।
डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ‘हिमांशु’
जन्म : 1 नवंबर, 1937 को इलाहाबाद में।
शिक्षा : इलाहाबाद में तदनंतर मध्य प्रदेश में विदिशा कॉलेज में प्राध्यापक। कालांतर में प्राचार्य के रूप में पदोन्नत हुए और मध्य प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में अपनी शैक्षिक, रचनात्मक और बौद्धिक सेवाओं का योगदान दिया।
कृतित्व : उत्तर प्रदेश में ‘तरुण संघ’ नामक नवयुवकों का एक सामाजिक संगठन स्थापित किया। गायत्री परिवार से जुड़कर युग निर्माण योजना के अभियान में श्रमदान और ग्रामीण अंचलों में जाकर प्रचार कार्य। मध्य प्रदेश में ‘राम नाम लेखक मंडल’ का गठन। ‘मंजूषा’ और ‘शेफालिका’ नामक दो कृतियाँ प्रकाशित।