₹300
भारतीय उच्चायोग के कार्यालय पर एक पेड़ गिर जाता है; पत्र, ज्ञापन एवं अन्य दस्तावेज तितर-बितर हो जाते हैं। सरकार नौ वर्षों तक सोच-विचार में लगी रहती है, फिर भी यह निर्णय नहीं ले पाती कि कार्यालय की मरम्मत कौन करे और कैसे करे! पर्यावरण असंतुलन की समस्या गहराती जाती है। कानून पारित कर नियम तैयार किए जाते हैं। उन्हें लागू करने के लिए बोर्ड गठित किए जाते हैं। गुप्तचर एजेंसियाँ, राज्यों के राज्यपाल और सुरक्षा विशेषज्ञ बँगलादेश की ओर से हो रही घुसपैठ के कारण गहराते खतरे के प्रति लगातार सचेत करते हैं। राजनीतिक दल मामले को लेकर आपस में ही उलझ पड़ते हैं। सरकारें गुप्तचर एजेंसियों को रिपोर्ट तैयार करने का आदेश जारी करती रहती हैं। विधायिकाएँ चेतावनी को नजरअंदाज करती रहती हैं। न्यायालय सुनवाई टालते रहते हैं और इधर घुसपैठ जारी रहती है।
शासन-प्रशासन व्यवस्था में सुधार आज की हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है। लेकिन ऐसे में सुधार किया जाए तो कैसे? सुधार के सुझाव-प्रस्ताव रखे जाते हैं, निर्णय भी लिया जाता है; लेकिन लागू होने से पहले ही वह मकड़जाल में फँस जाता है। ऐसे में क्या पूरे ढाँचे को ‘सुधारा’ जा सकता है? या फिर जो कुछ औद्योगिक लाइसेंसिंग के मामले में हुआ, दूरसंचार क्षेत्र में स्वयं लेखक ने जो कुछ सुनिश्चित करने का प्रयास किया—उससे सुधार का कोई रास्ता निकलता है? प्रस्तुत पुस्तक में उपयुक्त प्रामाणिक सामग्री के साथ लेखक ने सलाह दी है कि शासन-तंत्र के अजब तौर-तरीकों का कायापलट करके ही हम इस समस्या से बाहर निकल सकते हैं—सरकारी ढाँचे का ’50 और ’60 के दशकवाला स्वरूप, विकास का इंजन, बदलकर उसके स्थान पर एक ऐसा ढाँचा तैयार करना होगा, जिसमें हर नागरिक देश के विकास में अपना अधिकतम संभव योगदान दे सके।
सन् 1941 में जालंधर (पंजाब) में जनमे श्री अरुण शौरी ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सिराक्यूज यूनिवर्सिटी, अमेरिका से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। राजग सरकार में वह विनिवेश, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों सहित कई अन्य विभागों का कार्यभार सँभाल चुके हैं। ‘बिजनेस वीक’ ने वर्ष 2002 में उन्हें ‘स्टार ऑफ एशिया’ से सम्मानित किया था और ‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’ द्वारा उन्हें ‘द बिजनेस लीडर ऑफ द इयर’ चुना गया था। ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’, ‘दादाभाई नौरोजी पुरस्कार’, ‘फ्रीडम टु पब्लिश अवार्ड’, ‘एस्टर पुरस्कार’, ‘इंटरनेशनल एडिटर ऑफ द इयर अवार्ड’ और ‘पद्मभूषण सम्मान’ सहित उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक रह चुके हैं। विएना स्थित अंतरराष्ट्रीय प्रेस संस्था ने पिछली अर्ध-शताब्दी में प्रेस की स्वतंत्रता की दिशा में किए गए उनके कार्यों के लिए उन्हें विश्व के पचास ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम हीरोज’ में स्थान दिया है। पच्चीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।