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ईश्वर के अंशावतार शत्रुघ्न के समग्र व्यक्तित्व को उद्घाटित करने वाली यह कृति विश्व के साहित्याकाश की प्रथम एवं मौलिक कृति है। इस ग्रंथ में जहाँ ईश्वर अंश अवतार श्री शत्रुघ्न के अकथनीय कर्मयोग का अवतरण है, वहीं श्रीरामचरित मानस एवं वाल्मीकि रामायण के विवादित प्रसंगों की भी सही व्याख्या का अवतरण हुआ है। सनातन संस्कृति की वैदिक अवधारणाओं से लेकर संबंधित उपलब्ध सभी महनीय शास्त्रों का नवनीत इस ग्रंथ में प्रभु की कृपा से समाहित हुआ है। पावन श्रीरामचरित मानस और वाल्मीकि के संदर्भों और अंतर्निहित साक्ष्यों को आधार बनाकर ही इस ग्रंथ की रचना हुई है। अतः मूल तो वही ग्रंथ है, किंतु यह पावन ‘श्री शत्रुघ्न चरित’ महाकाव्य इन दोनों ग्रंथों का ज्योतिवाह अर्थात् प्रकाश-स्तंभ है। भारतीय अजेय चिंतनधारा को विकृत करने के आशय से की गई गलत व्याख्याओं को भी यथासंभव सही अर्थों में प्रस्तुत करने का कार्य इस ग्रंथ में हुआ है।
डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ‘रवि’
चैत्र शुक्ल चतुर्दशी संवत् २०११ तदनुसार १७ अप्रैल, १९५४ को फर्रुखाबाद जनपद के काली नदी के समीपस्थ छोटे से गाँव रायपुर में जन्मे परम प्रज्ञ आचार्य डॉ. रवीन्द्र शुक्ल क्रांतिकारी स्वभाव एवं राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत, ओजस्वी वक्ता, गंभीर चिंतक, संपादक, इतिहास और शास्त्रों के गंभीर अध्येता हैं। भारतीय दर्शन पर उनकी अपूर्व पकड़ है। आपातकाल के दौरान उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा, उस समय वे मात्र २१ वर्ष के थे। वह झाँसी से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चार बार प्रतिनिधि चुने गए। कृषि राज्य मंत्री एवं बेसिक शिक्षा मंत्री के रूप में आपने अपनी कार्यशैली की अमिट छाप छोड़ी है। स्कूलों में वंदे मातरम् गीत की अनिवार्यता के ऐतिहासिक निर्णय के कारण उन्हें मंत्री पद गँवाना पड़ा था, किंतु उन्होंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
अपनी प्रथम काव्य कृति ‘संकल्प’ से आरंभ साहित्यिक यात्रा ‘माँ’, ‘नगपति मेरा वंदन ले लो’, ‘वंदे भारत मातरम्’ तथा राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न पर विश्व का एकमात्र ग्रंथ महाकाव्य ‘श्री शत्रुघ्न चरित’ का प्रणयन करती हुई प्रस्तुत दर्शन दोहावली ‘संजीवनी’ तक पहुँची है। चिंतन और शोधपरक गद्य कृतियाँ ‘शिक्षा की प्राण प्रतिष्ठा’ एवं ‘वर्ण व्यवस्था की मौलिक अवधारणा और विकृति’ उनके बहुआयामी व्यक्तित्व एवं परम प्रज्ञ होने का शंखनाद करती है।