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‘शिखर तक चलो’ उपन्यास वैसा नहीं है जैसा प्रायः सभी उपन्यास होते हैं। इस उपन्यास की खूबी यह है कि इसमें कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता और फिर भी यह आद्योपांत रोचक व पठनीय बना रहता है।
इसमें सकारात्मक चिंतन, अहिंसा, त्याग, विराग, राष्ट्रभक्ति आदि मानवीय मूल्यों को उजागर करने का एक प्रयास है। उस प्रयास की निष्पत्ति ‘शिखर तक चलो’ है।
उपन्यास के नायक शिवा के साथ बँधा-बँधा पाठक न जाने कितने संसारों का रमण कर आता है। देश और काल की कोई सीमा नहीं रहती। महावीर से नक्सलवादियों तक और राजनीति, पत्रकारिता व समाज-सेवा के अनेक ज्ञात-अज्ञात पहलुओं का ऐसा मनोहारी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है कि समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध रखनेवाले पाठक भी इसमें अपने लिए पर्याप्त रोचक सामग्री पा सकेंगे। अणुव्रत आंदोलन का प्रतिपादन शिवा के चरित्र में इतनी चतुराई से किया गया है कि वह कहीं भी आरोपित प्रतीत नहीं होता। उलटे शिवा का आचरण ही अणुव्रत का जीवंत दस्तावेज बन जाता है। यह उपन्यास आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद का उत्तम उदाहरण होने के साथ ही प्रेरणा देनेवाला भी है। उपन्यास को पढ़कर युवा पीढ़ी को सही दिशा का बोध होने के साथ ही उसका पथ-प्रदर्शन भी होगा।
—डॉ. वेदप्रताप वैदिक
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी., नेट उत्तीर्ण (यू.जी.सी.)।
प्रकाशन : ‘ऊँची उड़ान’ एवं ‘शाकाहार : श्रेष्ठ आहार’ पुस्तकें एवं विविध लेख प्रकाशित।उपलब्धियाँ : अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान, पॉलीवुड वूमेन इम्पॉवरमेंट ऐंड प्राइड अवार्ड, ‘शहीदे आजम भगतसिंह सद्भावना पुरस्कार’, ‘करुणा इंटरनेशनल सम्मान’, ‘डॉ. नेमीचंद जैन स्मृति पुरस्कार’, ‘ज्ञानोदय पुरस्कार’, ‘गंगादेवी सरावगी जैन विद्या पुरस्कार’।सहभागिता : नैतिकता जन-जागरण अभियान, शाकाहार प्रचार-प्रसार हेतु विभिन्न रूपों में प्रयास, नशा-मुक्ति, कन्या-भ्रूण हत्या उन्मूलन हेतु रैलियाँ, कार्यशालाएँ, नाटक आदि का आयोजन।फिल्म राइटर्स एसोसिएशन, मुंबई की एसोसिएट सदस्य; दिल्ली प्रदेश अणुव्रत समिति की परामर्शदात्री; राष्ट्रीय विचार मंच कार्यकारिणी की सदस्य; भारतीय साहित्य परिषद्, राजस्थान एवं इंद्रप्रस्थ साहित्य अकादमी, दिल्ली की आजीवन सदस्य।
संपर्क : C/o डॉ. धनपत लूनिया, एस.डी. रीयलटेक प्रा. लि., 201 पंकज टॉवर, लोकल शॉपिंग सेंटर, सविता विहार, दिल्ली-110092।
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