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"भारतीय ज्ञान-परंपरा एवं शिक्षा-पद्धति ने केवल जीवन-मूल्य ही नहीं सृजित किए, केवल एक श्रेष्ठतम संस्कृति का ही विकास नहीं किया, अपितु इहलौकिक जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में अपने शोध, अध्ययन, अनुभव एवं दिव्य शक्तियों के प्रयोग और उपयोग से अद्वितीय योगदान किया। अत्यंत प्राचीन काल से भारतीय तीर्थ शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्र थे।
बौद्ध-युग के साथ ही भारत में विश्वविद्यालयों की परिकल्पना साकार हो चुकी थी। तक्षशिला, काशी, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, उज्जैन, सालोत्गी देवालय विद्यापीठ, एन्नामिरम् देवालय विद्यापीठ, तिरुमुक्कुदल देवालय विद्यापीठ, तिरुवोर्रियूर देवालय विद्यापीठ, मलकापुरम् देवालय विद्यापीठ जैसी अनेक शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाएँ भारतीय शिक्षा पद्धति की अमूल्य धरोहर हैं, जिनकी अवधारणात्मक पृष्ठभूमि पर विश्व में आधुनिक शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं का जन्म हुआ।
यह पुस्तक भारतीय दृष्टि एवं अवधारणा से अनुप्राणित शिक्षण संस्थानों का दिग्दर्शन करवाती है और भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता को रेखांकित करती है।"