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‘शिक्षा की संस्कृति’ भारतीय शिक्षा परंपरा से जुड़ी महत्वपूर्ण कृति है। इसमें शिक्षा और संस्कृति के परस्पर संबंधों पर चिंतन और मनन है। श्री कलराज मिश्र ने विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों को भारतीय समावर्तन संस्कार की आधुनिक दृष्ट बताते हुए शिक्षा से जुड़े उदात्त जीवन-मूल्यों पर भी इसमें गहराई से विचार किया है। शिक्षा की पूर्णता पर शिक्षण संस्थानों में होनेवाले दीक्षांत समारोहों से जुड़े शिक्षा-संस्कृति पर्व के संदर्भ में पुस्तक में बहुआयामी आलेख हैं। लेखक ने शिक्षा को ज्ञान की कुंजी बताते हुए यह स्थापित किया है कि यही वह मार्ग है, जिससे व्यक्ति शीर्ष पर पहुँच सकता है। पुस्तक में शिक्षा-संस्कृति के भारतीय चिंतन पर भी विशद सामग्री है। शिक्षा की सार्थकता के साथ ही ज्ञान, विज्ञान और दर्शन के माध्यम से व्यक्तित्व संस्कार से जुड़ी शिक्षा की संस्कृति पर गहराई से विचार किया गया है।
पं. कलराज मिश्र पिछले पाँच दशक से भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं। राष्ट्रवाद व समरसता हेतु एकात्म मानववाद उनकी राजनीतिक आस्था के मूल मंत्र रहे हैं। सन् 2014 में श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार के गठन के पश्चात् वे केंद्र सरकार में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्री बनाए गए। मंत्री के रूप में उनके मार्गदर्शन में एम.एस.एम.ई. सेक्टर ने अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। उनका सदैव यह प्रयास रहा कि एम.एस.एम.ई. सेक्टर के विकास हेतु सरकार की नीतियाँ व कार्यक्रम देश के दूर-दराज के उपेक्षित क्षेत्रों में रह रहे लोगों तक पहुँचें। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें जुलाई 2019 में हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल मनोनीत किया गया।
स्वभाव से सरल व मृदुभाषी मिश्रजी अपने लेखन के माध्यम से देश की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं पर आवाज उठाते रहे हैं। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें ‘Judicial Accountability’ व ‘हिंदुत्व : एक जीवन शैली’ काफी लोकप्रिय रही हैं।